कोशिकीय श्वसन
मेरे खयाल से हमारे शरीर में होने वाली सबसे महत्वपूर्ण रसायनिक क्रिया कोशिकीय श्वसन है। इसी क्रिया द्वारा हम भोजन के मुख्य तत्वों (कोर्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा) विशेष तौरपर ग्लूकोज से विभिन्न शारीरिक गतिविधियों के लिए ऊर्जा प्राप्त करते हैं। यदि हम कोशिकीय श्वसन को एक समीकरण व्यक्त करें तो ग्लूकोज का एक अणु ऑक्सीजन के छः अणुओं से क्रिया करता है और कार्बन डाइ-ऑक्साइड के छः अणु, जल के छः अणु और ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसी ऊर्जा से महा शक्तिमान अणु ए.टी.पी. बनता है और थोड़ी ऊष्मा (Heat) भी पैदा होती है। यह ए.टी.पी. ही जीवन की मुद्रा या ईंधन है, उसी तरह जैसे हमारी गाड़ियों का ईंधन पेट्रोल है। इस ऊर्जा को फोस्फेट ऊर्जा भी कहते हैं। आदर्श स्थितियों में ग्लूकोज के एक अणु से 38 ए.टी.पी. बनते हैं। संपूर्ण जीव जगत में सारी आवश्यक शारीरिक क्रियाओं (जैसे माँस पेशियों का संकुचन, नाड़ियों कों विद्युत संदेश भेजना आदि) को सम्पन्न करने के लिए ऊर्जा इसी ए.टी.पी. से मिलती है। कोशिकीय श्वसन-क्रिया की निम्न प्रमुख अवस्थाएँ हैं।
• ग्लाइकोलिसिस
• क्रेब्स साइकिल
• इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला
• खमीरीकरण
ग्लाइकोलिसिस
ग्लाइकोलिसिस (ग्लाइकोस =ग्लूकोज का पुराना नाम और लाइसिस=विघटन या टूटना) ग्लूकोज का चयापचय पथ है जिसमें ग्लूकोज C6H12O6 का एक अणु टूट कर पाइरुवेट (तीन कार्बन का एक अणु) CH3COCOO- + H+ के दो अणुओं में विभाजित हो जाता है। ग्लूकोज (Gluc=Sweet and ose=sugar) छः कार्बन का एक छल्ला होता है, जिस पर हाइड्रोजन के 12 परमाणु और ऑक्सीजन के 6 परमाणु जुड़े रहते हैं। इस क्रिया में उत्पन्न ऊर्जा से ए.टी.पी. (एडीनोलाइन ट्राइफोस्फेट) और एन.ए.डी.एच. (रिड्यूस्ड निकोटिनेमाइड एडीनीन डाइन्युक्लियोटाइड) के दो-दो अणु बनते हैं। यह क्रिया कोशिका-द्रव्य में होती है। ग्लाइकोसिस के विभिन्न चरणों का पता एम्बडेन, मेयरहॉफ एवं पर्नास नामक तीन वैज्ञानिकों ने लगाया था। इसलिए श्वसन की इस अवस्था को इन तीनों वैज्ञानिकों के नाम के आधार पर इ.एम.पी. पथ भी कहते हैं। इस क्रिया के लिए ऑक्सीजन जरूरी नहीं होती है, या यह श्वसन-क्रिया की अवायवीय अवस्था है। इस क्रिया के प्रारंभ में ए.टी.पी. के दो अणु खर्च होते हैं या सरल शब्दों में ए.टी.पी. के दो अणु निवेश करने पड़ते हैं। लेकिन इस क्रिया के अगले चरणों में ए.टी.पी. के चार अणु और NADH के दो अणु बनते हैं, यानी NADH के दो अणु और ए.टी.पी. के दो अणुओं का फायदा होता है। कोशिकीय श्वसन की इस प्रारंभिक अवस्था के रसायनिक कार्य-पथ में दस चरण होते हैं। पहले तीन चरणों को निवेश निवेश चरण कहते हैं। चौथे और पाँचवें चरण में ग्लूकोज का विघटन होता है और आखिरी पाँच चरणों (Pay off steps) में ऊर्जा की उत्पत्ति होती है, जिनको फलदायक चरण कहते हैं।
पहला चरण
इस चरण में हेग्जोकाइनेज एंजाइम ए.टी.पी. से एक फॉस्फेट घटक लेकर ग्लूकोज को देता है और ग्लूकोज 6-फॉस्फेट बनता है। अर्थात ग्लूकोज का फॉस्फरसीकरण होता है और ए.टी.पी. अपना एक फॉस्फेट देकर ए.डी.पी. में परिवर्तित हो जाता है। यह चरण अपरिवर्तनीय है।
Glucose (C6H12O6) + hexokinase + ATP → ADP + Glucose 6-phosphate (C6H11O6P1)
दूसरा चरण
दूसरे चरण में फॉस्फोग्लूकोआइसोमरेज एंजाइम पहले तो ग्लूकोज 6-फॉस्फेट के छल्ले को तोड़ कर एक लंबी श्रंखला का रूप दे देता है। फिर यही एंजाइम ग्लूकोज 6-फॉस्फेट के कार्बोनिल ग्रुप को पहले कार्बन से हटा कर दूसरे कार्बन से जोड़
देता है। इस क्रिया के लिए एक जल के अणु की जरूरत पड़ती है, जो अपना एक हाइड्रोजन ऑयन कार्बोनिल ग्रुप में ऑक्सीजन को भैंट कर देता है। दूसरे कार्बन के कार्बोक्सिल ऑयन से एक हाइड्रोजन अलग होता है और एक जल का अणु बनता है। इस तरह फ्रुक्टोज 6-फॉस्फेट बनता है जिसे यही एंजाइम पुनः छल्ले का रूप दे देता है। यह एक परिवर्तनीय (Reversible) क्रिया है और सामान्यतः आगे ही चलती है परन्तु यदि फ्रुक्टोज 6-फॉस्फेट का स्तर बढ़ जाये तो यह विपरीत दिशा में भी जा सकती है। फ्रुक्टोज भी इसी चरण में ग्लाइकोलिसिस कार्य-पथ में प्रवेश कर सकता है।
Glucose 6-phosphate (C6H11O6P1) + Phosphoglucoisomerase → Fructose 6-phosphate (C6H11O6P1)
तीसरा चरण
इस अपरिवर्तनीय चरण में फॉस्फोफ्रुक्टोकाइनेज एंजाइम ए.टी.पी. से एक और फॉस्फेट घटक लेकर फ्रुक्टोज 6-फॉस्फेट को देता है अर्थात उसका फॉस्फरसीकरण करता है और फ्रुक्टोज 1,6-बिसफॉस्फेट बनाता है। ए.टी.पी. फॉस्फेट घटक देकर ए.डी.पी. में परिवर्तित हो जाता है। यह चरण ग्लाइकोलिसिस प्रक्रिया के नियंत्रण की प्रमुख कड़ी है।
Fructose 6-phosphate (C6H11O6P1) + phosphofructokinase + ATP → ADP + Fructose 1, 6-diphosphate (C6H10O6P2)
चौथा चरण
इस चरण में पहले तो फ्रुक्टोज 1,6-बिसफॉस्फेट का छल्ला टूटता है फिर एलडोलेज एंजाइम इसे तीन कार्बन वाले ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट और डाइहाइड्रोएसीटोन फॉस्फेट अणुओं में विभाजित कर देता है।
Fructose 1, 6-diphosphate (C6H10O6P2) + aldolase → Glyceraldehyde 3-phosphate (C3H5O3P1) +
Dihydroxyacetone phosphate (C3H5O3P1)
पाँचवाँ चरण
इस चरण ट्रायोजफॉस्फेट आइसोमरेज एंजाइम डाइहाइड्रोएसीटोन फॉस्फेट का विन्यास-परिवर्तन (Isomerisation) कर ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट बना देता है। विन्यास-परिवर्तन में यौगिक का सूत्र तो वही रहता है बस परमाणुओं की स्थिति बदल जाती है। इस चरण का परिणाम होता है ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट के दो अणु, अर्थात आगे की सारी क्रियाएँ दो बार होंगी।
Dihydroxyacetone phosphate (C3H5O3P1) + triosephosphate isomerase → Glyceraldehyde 3-phosphate (C3H5O3P1)
छठा चरण
इस चरण में ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम NAD+ और फॉस्फेट ग्रुप द्वारा ग्लीसरेल्डिहाइड 3-फॉस्फेट को ऑक्सीकृत करता है और 1,3-बिसफॉस्फोग्लीसरेट तथा NADH बनते हैं।
2 glyceraldehyde 3-phosphate (C3H5O3P1) + 2 H- + 2 NAD+Glyderaldehyde phosphate dehydrogenase → 2 NADH + 2 H+ 2 molecules of 1,3-bisphoshoglycerate (C3H4O4P2)
सातवाँ चरण
सातवें चरण में फॉस्फोग्लीसरेट काइनेज एंजाइम 1,3-बिसफॉस्फोग्लीसरेट से फॉस्फेट ग्रुप लेकर ए.डी.पी. को दे देते हैं और ए.टी.पी. बनता है। 1,3-बिसफॉस्फोग्लीसरेट फॉस्फेट ग्रुप त्याग कर 3-फॉस्फोग्लीसरेट बनता है। चूँकि ग्लूकोज के एक अणु के लिए यह क्रिया दो बार होती है अतः इस चरण में दो ए.टी.पी. बनते हैं। पहले और तीसरे चरण में हमने दो ए.टी.पी. निवेश किये थे और दो हमें वापस मिल गये हैं अर्थात इस चरण में हम लाभ-हानि की दृष्टि से बराबर हो जाते हैं। यदि कोशिका में पर्याप्त ए.टी.पी. होते हैं तो यह क्रिया संपन्न नहीं होती है क्योंकि ए.टी.पी. जल्दी बेकार हो जाते हैं।
2 molecules of 1,3-diphoshoglyceric acid (C3H4O4P2) + phosphoglycerokinase + 2 ADP → 2 molecules of 3-phosphoglycerate (C3H5O4P1) + 2 ATP
आठवाँ चरण
आठवें चरण में फॉस्फोग्लीसरोम्यूटेज एंजाइम 3-फॉस्फोग्लीसरेट में फॉस्फेट ग्रुप को तीसरे कार्बन से हटा कर दूसरे कार्बन से जोड़ देता है अर्थात विन्यास परिवर्तन होता है और फलस्वरूप 2-फॉस्फोग्लीसरिक एसिड बनता है।
2 molecules of 3-Phosphoglycerate (C3H5O4P1) + phosphoglyceromutase → 2 molecules of 2-Phosphoglyceric acid (C3H5O4P1)
नवाँ चरण
नवें चरण में इनोलेज एंजाइम 2-फॉस्फोग्लीसरिक एसिड का निर्जलीकरण करता है और फॉस्फोइनोलपाइरुवेट बनता है।
2 molecules of 2-Phosphoglyceric acid (C3H5O4P1) + enolase → 2 molecules of phosphoenolpyruvate (PEP) (C3H3O3P1)
दसवाँ चरण
दसवें और आखिरी चरण में पाइरुवेट काइनेज एंजाइम फॉस्फोइनोलपाइरुवेट से फॉस्फेट ग्रुप लेकर ए.डी.पी. को देता है फलस्वरूप पाइरुवेट और ए.टी.पी. बनता है।
2 molecules of PEP (C3H3O3P1) + pyruvate kinase + 2 ADP → 2 molecules of pyruvic acid (C3H4O3) + 2 ATP
इस तरह हमने देखा कि एक ग्लूकोज के एक अणु से ए.टी.पी. के दो अणु और NADH के दो अणु का फायदा होता है। पाइरुवेट और NADH श्वसन-क्रिया की आगे की अवस्थाओं में काम आते हैं।
क्रेब्स चक्र
ग्लाइकोलिसिस के बाद कोशिकीय श्वसन-क्रिया एक और जीवरसायनिक क्रिया चक्र में प्रवेश करती है, जिसे क्रेब्स-चक्र या सिट्रिक एसिड सायकिल या ट्राइकोर्बेक्सिलिक एसिड सायकिल भी कहते हैं। हमने देखा कि किस प्रकार ग्लाइकोलिसिस प्रक्रिया में ग्लूकोज का एक अणु टूट कर पाइरुविक एसिड के दो अणुओं में विभाजित होता है। इसके बाद की क्रियाएँ वायवीय हैं अर्थात ऑक्सीजन की उपस्थिति जरूरी होती है और ये माइटोकोन्ड्रिया में संपन्न होती हैं। क्रेब्स-चक्र में प्रवेश करने के पहले पाइरुवेट डिहाइड्रोजिनेज एंजाइम पाइरुविक एसिड (3 Carbon Molecule) का विघटन करता है, एक कार्बन का परमाणु कार्बन डाइ-ऑक्साइड के रूप में अलग हो जाता है तथा शेष बचे दो कार्बन कोएन्जाइम-ए से जुड़ते हैं और एसीटाइल-कोएन्जाइम-ए या एसीटाइल-कोए (acetyl-coenzyme A or acetyl-CoA) बनता है। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रोन और हाइड्रोजन ऑयन NAD से जुड़ कर शक्तिशाली ऊर्जा-वाहक NADH बनाते हैं। यह प्रक्रिया क्रेब्स-चक्र का हिस्सा नहीं है बल्कि ग्लाइकोलिसिस और क्रेब्स-चक्र के बीच की कड़ी है।
क्रेब्स-चक्र का प्रारंभ एसीटाइल-कोए (2 Carbon का अणु) से होता है। क्रेब्स-चक्र वायवीय-श्वसन की मुख्य धुरी है। एसीटाइल-कोए के स्रोत ग्लाइकोलिसिस के अलावा अमाइनो एसिड और फैटी एसिड्स भी हो सकते हैं। एसीटाइल-कोए (2 Carbon) ऑग्जेलोएसीटिक एसिड (4 Carbon) से क्रिया कर सिट्रिक एसिड (6 Carbon) बनाता है। सिट्रिक एसिड कई एंजाइम्स की मदद से दस विभिन्न रसायनिक क्रियाओं या कड़ियों द्वारा एक चक्र-पथ से गुजरता है। कई कड़ियों में उच्च ऊर्जावान इलेक्ट्रोन निकलते हैं, जिन्हें इलेक्ट्रोन-अभिग्राहक NAD ग्रहण कर लेता है और हाइड्रोजन (प्रोटोन्स) से जुड़ कर ऊर्जा-वाहक तत्व NADH बनते हैं। एक कड़ी में इलेक्ट्रोन-अभिग्राहक FAD होते हैं जो दो हाइड्रोजन से जुड़ कर ऊर्जा-वाहक तत्व FADH2 बन जाते हैं। एक कड़ी में ऊर्जा उत्पन्न होती है और ATP का एक अणु बनता है। चूँकि एक ग्लूकोज के अणु से दो पाइरुवेट बनते हैं और क्रेब्स-चक्र में प्रवेश करते हैं अतः कुल दो ATP के अणु बनते हैं।
इस चक्र में एसीटाइल-कोए के एक अणु से दो कार्बन अलग होते हैं और दो CO2 के अणु बनते हैं। चूँकि चक्र में कुल दो सीटाइल-कोए प्रवेश करते हैं, इसलिए कुल चार कार्बन अलग होते हैं और CO2 के चार अणु बनते हैं। यदि इसमें पाइरुवेट से एसीटाइल-कोए बनने की प्रक्रिया में बनने वाले CO2 के दो अणुओं को भी जोड़ दें तो कुल हुए छः अणु अर्थात एक चक्र में कुल छः कार्बन CO2 के रूप में विसर्जित हुए।
क्रेब्स-चक्र का अंतिम उत्पाद भी ऑग्जेलाएसिटिक एसिड है, जो पुनः एसीटाइल-कोए के साथ मिल कर चक्र की अगली पारी में प्रवेश करता है। यदि एक क्रेब्स-चक्र का लेखा-जोखा देखें तो उसमें कुल दो ATP, दस NADH और दो FADH2 बनते हैं। NADH और FADH2 उच्च ऊर्जा-वाहक तत्व हैं जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला (जो माइटोकॉंड्रिया की आंतरिक झिल्ली में संपन्न होती है) में ऊर्जा (ATP के रूप में) के निर्माण में योगदान करते हैं। एक NADH तीन और एक FADH2 दो ATP बनाता है।
क्रिया 1 सिट्रिक एसिड का निर्माण
साइट्रेट सिंथेज एंजाइम की उपस्थिति में एसीटाइल-कोए और ऑग्जेलाएसिटिक एसिड संघनित होकर सिट्रिक एसिड बनाते हैं। एसीटाइल ग्रुप CH3COO एसीटाइल-कोए से अलग होकर ऑग्जेलाएसिटिक एसिड के कीटोन कार्बन से जुड़ जाता है, जो अल्कॉहल में परिवर्तित हो जाता है। सरल शब्दों में दो कार्बन का अणु चार कार्बन के अणु से मिल कर छः कार्बन अणु सिट्रिक एसिड बन जाता है और कोए ग्रुप अलग हो जाता है।
Oxaloacetic Acid + Acetyl CoA + H2O --> Citric Acid + CoA-SH (citrate synthase)
क्रिया 2 अल्कॉहल का निर्जलीकरण
अगली दो कड़ियों में सिट्रिक एसिड का -OH ग्रुप तीसरे कार्बन से अलग होकर दूसरे कार्बन से जुड़ जाता है अर्थात आणविक विन्यास बदल जाता है। इस कड़ी में एकोनाइटेज एंजाइम की उपस्थिति में अल्कॉहल का निर्जलीकरण होता है और फलस्वरूप एकोनाइटिक एसिड बनता है जो अगली कड़ी तक एकोनाइटेज एंजाइम से चिपका रहता है।
Citric Acid --> Aconitic Acid + H2O (aconitase)
क्रिया 3 अल्कॉहल निर्माण हेतु पुनर्जलीकरण
इस कड़ी में एकोनाइटिक एसिड का पुनर्जलीकरण होता है, -OH ग्रुप तीसरे कार्बन से हट कर दूसरे कार्बन से जुड़ जाता है और आइसोसिट्रिक एसिड बनता है।
Aconitic Acid + H2O --> Isocitric Acid (aconitase)
क्रिया 4 ऑक्सीकरण
यह पहली ऑक्सीकरण क्रिया है जिसमे अल्कॉहल कीटोन में परिवर्तित हो जाता है और दो हाइड्रोजन और दो इलेक्ट्रोन NAD+ को प्राप्त होते हैं तथा NADH + H+ बनता है, जो श्वसन की अगली अवस्था इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला में प्रवेश करता है। इस क्रिया में ऑग्जेलासक्सीनिक एसिड बनता है और अगली कड़ी तक आइसोसिट्रेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम से चिपका रहता है।
Isocitric Acid + NAD+ + 2H + e- --> Oxalosuccinic Acid + NADH + H + (isocitrate dehydrogenase)
क्रिया 5 अकार्बनीकरण (Decarboxylation)
यह अकार्बनीकरण की पहली कड़ी है जिसमें कार्बन डाइ-ऑक्साइड के रूप में एक कार्बन का नुकसान होता है। फलस्वरूप बनने वाले अणु में पाँच कार्बन ही बचते हैं जिसे अल्फा-कीटोग्लुटेरिक एसिड कहते हैं। स्वाभाविक है यह क्रिया आइसोसिट्रेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम द्वारा ही संपन्न होती है।
Oxalosuccinic Acid --> a-Ketoglutaric Acid + CO2 (isocitrate dehydrogenase)
क्रिया 6 ऑक्सीकरण, अकार्बनीकरण थायोल इस्टर निर्माण
तीन एंजाइम्स अल्फा-कीटोग्लूटारेट डीहाइड्रोजिनेज कॉम्प्लेक्स की मदद से संचालित यह एक जटिल ऑक्सीकृत अकार्बनीकरण प्रक्रिया है जो इस पूरे चक्र की एकमात्र अपरिवर्तनीय कड़ी है और चक्र को विपरीत दिशा में नहीं जाने देती है। इस चक्र की यह दूसरी ऑक्सीकरण क्रिया है जिसमें अल्कॉहल कीटोन में परिवर्तित होता है। यहाँ भी दो हाइड्रोजन और दो इलेक्ट्रोन्स NAD+ को प्राप्त होते हैं तथा NADH + H+ बनता है जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला में प्रवेश करता है।
यह अकार्बनीकरण की दूसरी कड़ी है जिसमें कार्बन डाइ-ऑक्साइड के रूप में एक कार्बन का नुकसान होता है। इस कड़ी की समाप्ति तक सिट्रिक एसिड के दो कार्बन अलग होकर CO2 के रूप में साथ छोड़ चुके होते हैं। फलस्वरूप बचा हुआ चार कार्बन का अणु CoA थायोल इस्टर से ऊर्जावान बंध द्वारा जुड़ कर सक्सीनाइल कोए बनता है।
α-Ketoglutaric Acid + NAD+ + CoA-SH --> Succinyl-CoA + NADH + H+ + CO2 (α-ketoglutarate dehydrogenase)
क्रिया 7 सक्सीनाइल कोए का जलीकरण व ए.टी.पी. का निर्माण
इस क्रिया में सक्सीनाइल कोए के थायोल इस्टर ऊर्जावान बंध का जलीकरण होता है, ऊर्जा की उत्पत्ति होती है और जी.डी.पी. का अणु फोस्फोरस से जुड़ कर एक जी.टी.पी. में परिवर्तित हो जाता है। इस पूरे चक्र में जी.टी.पी. का सीधा निर्माण यहीं होता है। इस क्रिया में सक्सीनिक एसिड बनता है।
Succinyl-CoA + GDP + Pi --> Succinic Acid + CoA-SH + GTP (succinyl-CoA synthetase)
क्रिया 8 ऑक्सीकरण
इस कड़ी में सक्सीनेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम की उपस्थिति में एक अलग तरह का ऑक्सीकरण होता है, जिसमें सक्सीनिक एसिड से हाइड्रोजन अलग हो जाते हैं और FAD से क्रिया कर FADH2 बनाते हैं। इस क्रिया के अत में फ्यूमरिक एसिड बनता है।
Succinic Acid + FAD --> Fumaric Acid + FADH2 (succinate dehydrogenase)
क्रिया 9 अल्कॉहल निर्माण हेतु जलीकरण
इस कड़ी में फ्यूमरेज एंजाइम की उपस्थिति में फ्यूमरिक एसिड का जलीकरण होता है और मेलिक एसिड बनता है।
Fumaric Acid + H2O --> Malic Acid (fumarase)
क्रिया 10 ऑक्सीकरण
इस कड़ी में मेलेट डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम मेलिक एसिड का ऑक्सीकरण करता है और ऑग्जेलाएसिटिक एसिड बनाता है। दो हाइड्रोजन और दो इलेक्ट्रोन NAD+ को प्राप्त होते हैं तथा NADH + H+ बनता है, जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला में प्रवेश करता है।
Malic Acid + NAD+ --> Oxaloacetic Acid + NADH + H+ (malate dehydrogenase)
इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला
इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला कोशिकीय-श्वसन की अन्तिम अवस्था है। यह कई जटिल प्रोटीन संरचनाओं की एक श्रंखला है जो माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में स्थित होती है। इनमें कुछ इलेक्ट्रोन दानकर्ता (जैसे NADH और FADH2) तो कुछ इलेक्ट्रोन अभिग्राहक (जैसे O2) के रूप में कार्य करती हैं, जिनके बीच इलेक्ट्रोन्स का आदान-प्रदान होता है और इलेक्ट्रोन्स एक संरचना से दूसरी संरचना को थमा दिये जाते हैं। इस तरह इलेक्ट्रोन्स आंतरिक झिल्ली में स्थित जटिल प्रोटीन संरचनाओं से गुजरते हुए चरण दर चरण ऊर्जा बाँटते हुए आगे बढ़ते हैं और यह ऊर्जा हाइड्रोजन ऑयन (या प्रोटोन) को मेट्रिक्स से बाहर पंप करती है। आंतरिक झिल्ली के बाहर हाइड्रोजन ऑयन की संख्या बढ़ती जाती है और बाहर विद्युत-रसायन दबाव बहुत बढ़ जाता है जो हाइड्रोजन ऑयन को ए.टीपी. सिन्थेज में होकर अंदर जाने के लिए विवश करता है। ध्यान रहे माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली हाइड्रोजन ऑयन्स के लिए पूर्णतः अपारगम्य होती है। हाइड्रोजन ऑयन के अंतरझिल्लीय कक्ष (बाहरी और आंतरिक झिल्ली के बीच का स्थान) में प्रवेश से जो ऊर्जा निकलती है वह ए.टी.पी. बनाती है।
माइटोकॉंड्रियम की संरचना
इस प्रक्रिया को अच्छी तरह समझने के लिए हमें माइटोकॉंड्रियम की संरचना को समझ लेना चाहिये। माइटोकॉंड्रिया कोशिका-द्रव्य में स्थित सूक्ष्म ऊर्जा-उत्पादक इकाइयाँ हैं और एक कोशिका में कई माइटोकॉंड्रिया पाये जाते हैं। माइटोकॉंड्रिया कोशिका की लगभग आत्मनिर्भर महत्वपूर्ण संरचना है। ये अपनी इच्छा से कोशिका-द्रव्य में विचरण कर सकते हैं, आकार बदल सकते हैं, विभाजित हो सकते हैं, अपने लिए डिज़ाइनर प्रोटीन बना सकते हैं और इनका अपना अलग डी.एन.ए. भी होता है। माँस-पेशी, हृदय और मस्तिष्क की कोशिकाओं में बहुत ज्यादा माइटोकॉंड्रिया होते हैं क्योंकि इनको बहुत सारी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। शरीर की विभिन्न क्रिया-कलापों के लिए आवश्यक ऊर्जा (ए.टी.पी.) का निर्माण मुख्यतः यहीं होता है। इसमें एक बाहरी झिल्ली या भित्ति होती है और एक घुमावदार आन्तरिक झिल्ली होती है। आन्तरिक झिल्ली के घुमाव या सलवटों को क्रिस्टे कहते हैं। आन्तरिक झिल्ली के भीतर के कक्ष को मेट्रिक्स कहते हैं, जिसमें माइटोकॉंड्रियल डी.एन.ए., राइबोजोम्स, एंजाइम्स और टीआर.एन.ए. स्थित होते हैं। दोनों झिल्लियों के बीच के स्थान को अन्तरझिल्लीय कक्ष कहते हैं। इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला आन्तरिक झिल्ली में ही संपन्न होती है।
ग्लाइकोलिसिस और क्रेब्स चक्र में हमने देखा कि एक ग्लूकोज के अणु से दस उच्च ऊर्जा-वाहक तत्व NADH और दो FADH2 बनते हैं, जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला में मुख्य इलेक्ट्रोन दानदाता के रूप में कार्य करते हैं। औसतन एक NADH तीन और एक FADH2 दो ATP बनाता है। इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में संपन्न होती है, जिसके निम्न घटक या कॉम्प्लेक्स होते हैं।
एन.ए.डी.एच. डीहाइड्रोजिनेज या कॉम्प्लेक्स I
कॉम्प्लेक्स I या एन.ए.डी.एच. ऑक्सीडोरिडक्टेज या डीहाइड्रोजिनेज एंजाइम, जो इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला का पहला प्रोटीन है, अंग्रेजी के अक्षर L के आकार का और अपेक्षाकृत बड़ा होता है और इसमें कम से कम 46 प्रोटीन इकाइयाँ और FMN और Fe-S क्लस्टर होते हैं। संक्षेप में यह एंजाइम NADH से दो इलेक्ट्रोन अलग करता है और उसे NAD+ के रूप में ऑक्सीकृत करता है और ये दोनों इलेक्ट्रोन कोएंजाइम क्यू-10 (ubiquinone) या Q का अपघटन कर यूबीक्विनोल या QH2 बनाते हैं। इस क्रिया में 2 हाइड्रोजन मेट्रिक्स से लिये जाते हैं और 2 हाइड्रोजन अन्तरझिल्लीय कक्ष में पंप कर दिये जाते हैं। इस मुख्य क्रिया को निम्न समीकरण में दर्शाया जा सकता है।
NADH + 1H+ + Q + 2H+मेट्रिक्स à NAD+ + QH2 + 2H+अन्तरझिल्लीय
इस क्रिया में सबसे पहले NADH कॉम्प्लेक्स I से संपर्क करता है और दो ऊर्जावान इलेक्ट्रोन कॉम्प्लेक्स I को देकर NAD+ के रूप में ऑक्सीकृत होता है। NAD+ क्रेब्स चक्र में पुनः चक्रित हो जाता है। ये दोनों इलेक्ट्रोन कॉम्प्लेक्स I के उपघटक फ्लेमिन मोनोन्युक्लियोटाइड (FMN) को अपघटित कर FMNH2 बनाते हैं। यहाँ मैं आपको बतला दूँ कि ऑक्सीकरण का मतलब ऑक्सीजन से जुड़ना और अपघटन का मतलब हाइड्रोजन से जुड़ना होता है। इलेक्ट्रोन की दृष्टि से देखें तो इलेक्ट्रोन का अलग होना ऑक्सीकरण है और इलेक्ट्रोन से जुड़ना अपघटन है। इसके बाद इलेक्ट्रोन लोह व गंधक युक्त यौगिकों (Fe-S क्लस्टर्स) से क्रिया करते और ऊर्जा दान करते-करते आगे बढ़ते हैं। कॉम्प्लेक्स I में [2Fe–2S] और [4Fe–4S] दोनों तरह के Fe-S क्लस्टर्स होते हैं। FMNH2 पहले Fe-S क्लस्टर्स को एक इलेक्ट्रोन देकर FMNH• के रूप में अपघटित करता है। FMNH• अगले Fe-S क्लस्टर को इलेक्ट्रोन देकर उसे भी अपघटित करता है। इस क्रिया को निम्न समीकरणों में दर्शाया गया है।
FMNH2 + (Fe-S)ox à FMNH• + (Fe-S)red + H+
FMNH• + (Fe-S)ox à FMN + (Fe-S)red + H+
इलेक्ट्रोन के परिवहन से उत्पन्न ऊर्जा दो हाइड्रोजन ऑयन मेट्रिक्स से उठा कर अन्तरझिल्लीय कक्ष में पंप कर देती है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि हाइड्रोजन ऑयन का अन्तरझिल्लीय कक्ष में पंप होना और कॉम्प्लेक्स I में से इलेक्ट्रोन का गुजरना दोनों क्रियाएँ एक दूसरे से जुड़ी हैं। यदि आप हाइड्रोजन ऑयन को अन्तरझिल्लीय कक्ष में जाने से रोक देते हैं तो इलेक्ट्रोन भी कॉम्प्लेक्स I को पार नहीं कर पायेंगे या इलेक्ट्रोन को कॉम्प्लेक्स I से गुजरने नहीं देंगे तो हाइड्रोजन ऑयन भी अन्तरझिल्लीय कक्ष को पार नहीं कर पायेंगे। दोनों क्रियाओं का साथ घटित होना नियम है।
कोएंजाइम क्यू
इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला में इलेक्ट्रोन-वाहक एक विशिष्ट अणु से ही इलेक्ट्रोन ग्रहण कर सकते हैं। गतिशील इलेक्ट्रोन Fe-S क्लस्टर की श्रंखला से गुजरते हुए कोएंजाइम क्यू को स्थानांतरित कर दिये जाते हैं। कोएंजाइम क्यू दो इलेक्ट्रोन ग्रहण करते है और मेट्रिक्स से दो हाइड्रोजन ऑयन भी उठाते हैं और QH2 रूप में अपघटित (Reduced) हो जाते हैं।
सक्सीनेट-क्यू ऑक्सीडोरिडक्टेज या कॉम्प्लेक्स II
सक्सीनेट-क्यू ऑक्सीडोरिडक्टेज या कॉम्प्लेक्स II या सक्सीनेट डिहाइड्रोजिनेज इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला का दूसरा प्रवेश द्वार है। लेकिन यह असामान्य है क्योंकि यह क्रेब्स-चक्र और इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला दोनों में कार्य करता है। कॉम्प्लेक्स II में चार प्रोटीन उपइकाइयाँ, फ्लेविन एडिनीन डाइन्युक्लियोटाइड (FAD) उपघटक, Fe-S क्लस्टर और एक हीम समूह होता है। हीम समूह इलेक्ट्रोन परिवहन में कोई सहायता नहीं करता है। कॉम्प्लेक्स II सक्सीनेट को फ्यूमरेट में ऑक्सीकृत करता है और इस क्रिया से निकले इलेक्ट्रोन FAD को अपघटित कर FADH2 बनाते हैं। इलेक्ट्रोन FADH2 से निकल कर Fe-S क्लस्टर की श्रंखला से गुजरते हुए कोएंजाइम क्यू को स्थानांतरित कर दिये जाते हैं। कोएंजाइम क्यू दो इलेक्ट्रोन ग्रहण करते है और मेट्रिक्स से दो हाइड्रोजन ऑयन भी उठाते हैं और QH2 रूप में अपघटित (Reduced) हो जाते हैं। इस क्रिया में NADH के ऑक्सीकरण की अपेक्षा बहुत कम ऊर्जा उत्पन्न होती है इसलिए कॉम्प्लेक्स II हाइड्रोजन ऑयन को अन्तरझिल्लीय कक्ष में पंप नहीं कर पाता है। कॉम्प्लेक्स II की मुख्य क्रिया को निम्न समीकरण द्वारा दर्शाया जा सकता है।
Succinate + Q à Fumarate + QH2
क्यू-साइटोक्रोम सी ऑक्सीडोरिडक्टेज या साइटोक्रोम बी-सी1 या कॉम्प्लेक्स III
क्यू-साइटोक्रोम सी ऑक्सीडोरिडक्टेज को साइटोक्रोम बी-सी1 कॉम्प्लेक्स या कॉम्प्लेक्स III भी कहते हैं। यह एंजाइम दो प्रोटीन खंडो से बना होता है, हर खंड में 11 प्रोटीन इकाइयाँ, Fe-S क्लस्टर्स, और तीन साइटोक्रोम (एक साइटोक्रोम सी1 और दो बी साइटोक्रोम) होते हैं। साइटोक्रोम एक प्रोटीन होता है जो इलेक्ट्रोन का स्थानांतरण करने में सक्षम होता है और इसमें कम से कम एक हीम घटक होता है। हीम घटक के मध्य में लोह अणु होते हैं, जो इलेक्ट्रोन के स्थानांतरण के आधार पर अपघटित फैरस (+2) या ऑक्सीकृत फैरिक (+3) के रूप में हो सकते हैं।
साइटोक्रोम बी-सी1 की मुख्य क्रिया में यूबीक्विनोन या कोएंजाइम क्यू के एक अणु का ऑक्सीकरण और कोएंजाइम क्यू के साइटोक्रोम सी (यह एक छोटा सा हीम युक्त प्रोटीन है) के दो अणुओं का अपघटन होता है। साइटोक्रोम सी एक बार में एक ही इलेक्ट्रोन को स्थानांतरित करता है। निम्न समीकरण से यह क्रिया स्पष्ट हो जाती है।
QH2 + 2Cyt cox + 2H+matrix à Q + 2Cyt cred + 4H+intermembrane
चूँकि एक बार में एक ही इलेक्ट्रोन का साइटोक्रोम सी द्वारा स्थानांतर हो सकता है, इसलिए कॉम्प्लेक्स III में यह क्रिया दो चरणों में होती है और इसे क्यू-चक्र कहते हैं। पहले चरण में एंजाइम तीन पदार्थों से संपर्क करता है। पहला है QH2 जो ऑक्सीकृत होता है और एक इलेक्ट्रोन साइटोक्रोम सी को देता है। QH2 से दो हाइड्रोजन ऑयन (या प्रोटोन) अलग होकर अन्तरझिल्लीय कक्ष में प्रवेश कर जाते हैं। तीसरा पदार्थ है Q जो QH2 से दूसरा इलेक्ट्रोन लेकर अपघटित होकर Q- बनता है, जो एक मुक्त कण है और जिसे यूबीसेमीक्विनोन कहते हैं । पहले दो तत्व तो अलग हो जाते हैं लेकिन यूबीसेमीक्विनोन इस एंजाइम से बंधा रहता है।
दूसरे चरण में QH2 का दूसरा अणु एक इलेक्ट्रोन तो साइटोक्रोम सी को देता है और दूसरा इलेक्ट्रोन मेट्रिक्स से दो हाइड्रोजन ऑयन लेकर यूबीसेमीक्विनोन को अपघटित कर QH2 बनाता है। यह QH2 कॉम्प्लेक्स III से अलग हो जाता है। यूबीक्विनोन का यूबीक्विनोल के रूप में अपघटन माइटोकॉन्ड्रिया की आंतरिक झिल्ली के अन्दर की तरफ होता है और यूबीक्विनोल का यूबीक्विनोन के रूप में ऑक्सीकरण बाहर की तरफ होता है, इसलिए मेट्रिक्स से हाइड्रोजन ऑयन (प्रोटोन) झिल्ली के बाहर पंप होते हैं और झिल्ली के बाहर प्रोटोन का अनुपात बढ़ता है।
साइटोक्रोम ऑक्सीडेज या कॉम्प्लेक्स IV
साइटोक्रोम सी ऑक्सीडेज या कॉम्प्लेक्स IV इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला का आखिरी प्रोटीन कॉम्प्लेक्स है। यह बहुत जटिल प्रोटीन है जिसमें 13 इकाइयाँ, दो हीम ग्रुप और धातुयुक्त उपघटक होते हैं जिनमें तांबे के तीन अणु, मेग्नीशियम का एक अणु तथा जिंक का एक अणु होता है।
यह एंजाइम कोशिकीय श्वसन के आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण क्रिया को उत्प्रेरित करता है और अंतिम इलेक्ट्रोन-अभिग्राहक (final electron acceptor) ऑक्सीजन (प्राणवायु) को इलेक्ट्रोन समर्पित करता है। ऑक्सीजन अपघटित होकर जल और ऊर्जा बनाती है। यह ऊर्जा मेट्रिक्स से प्रोटोन को झिल्ली के बाहर पंप करती हैं और झिल्ली के बाहर प्रोटोन का अनुपात (gradient) बढ़ता है। इस अतिम श्वसन क्रिया को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त करते हैं।
4Cyt cred + O2 + 2H+matrix à 4Cyt cox Q + 2H2O + 4H+intermembrane
ए.टी.पी सिन्थेज
ए.टी.पी. का निर्माण माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में स्थित ए.टी.पी.सिन्थेज मोटर एंजाइम द्वारा होता है। यह एंजाइम एक उत्कृष्ट मोटर की तरह कार्य करता है। लगभग 6000 चक्कर प्रति मिनट की गति से घूमने वाली यह मोटर सूक्ष्मीकरण की पराकाष्टा है। यह इतनी सूक्ष्म होती है कि एक पिनहैड जितनी जगह में दो लाख मोटरें समा जायें। हर कोशिका में ऐसी सैंकड़ों मोटरें होती हैं और हमारे शरीर में लगभग 10 क्वाड्रिलियन (यानी इसे लिखने के लिए आपको एक के आगे 16 शून्य लगाने होंगे) मोटरें होती हैं।
ए.टी.पी.सिन्थेज मोटर एंजाइम की संरचना अत्यंत जटिल होती है। यह आकार में काफी बड़ी और 31 तरह के प्रोटीन्स (जो 3000 अमाइनो एसिड्स की मदद से तैयार होते हैं) से बनी होती है। माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में स्थित इसका घूमने वाला चक्का सी-प्रोटीन उप-इकाई से बना होता है। इस चक्के से एक मुड़ी हुई धुरी जुड़ी होती है, जो चक्के के साथ घूमती है। यह गामा प्रोटीन उप-इकाई से बनी होती है। धुरी के दूसरा सिरा छः प्रोटीन उप-इकाइयों, 3 अल्फा और 3 बीटा से बनी एक टोपी में धँसा रहता है। यह टोपी घूमती नहीं है, बल्कि झिल्ली में स्थिर रहती है।
ए.डी.पी. का अणु (जिसमें दो फोस्फेट होते हैं) एक फोस्फेट के मिल कर ऊर्जावान ए.टी.पी. बनाता है। माइटोकॉंड्रियम की आंतरिक झिल्ली में इलेक्ट्रोन परिवहन श्रंखला द्वारा पैदा हुई ऊर्जा के प्रभाव से हाइड्रोजन ऑयन मेट्रिक्स से बाहर भेज दिये जाते हैं। धीरे-धीरे बाहरी अन्तर झिल्लीय कक्ष में हाइड्रोजन ऑयन की संख्या बढ़ती जाती है, जिसके फलस्वरूप मेट्रिक्स की तुलना में बाहरी कक्ष का पीएच कम होने लगता है अर्थात अम्लता बढ़ने लगती है और हाइड्रोजन ऑयन में घनात्मक आवेश होने के कारण बाहरी कक्ष अपेक्षाकृत अधिक घनात्मक होने लगता है। बाहरी कक्ष में बढ़ते विद्युत और रसाकर्षण के दबाव और अम्लता से छटपटाते हाइड्रोजन ऑयन पुनः मेट्रिक्स में जाना चाहते हैं। लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए एक ही मार्ग बचता है जो ए.टी.पी.सिन्थेज मोटर एंजाइम से होकर गुजरता है। यह एंजाइम हाइड्रोजन ऑयन के सामने शर्त रखता है कि वे उसकी मोटर के चक्के को तेजी से घुमाकर ही मेट्रिक्स में प्रवेश कर सकते हैं। लाचार हाइड्रोजन ऑयन हर शर्त मानने को तैयार हो जाते हैं और मोटर के चक्के को तेजी से टर्बाइन की भाँति घुमाते हुए मेट्रिक्स में लौटने लगते हैं।
मोटर के साथ उसकी मुड़ी हुई धुरी भी टोपी में धुरी की तरह घूमती है जो अपनी याँत्रिक ऊर्जा से ए.डी.पी. और फोस्फेट से जोड़ कर ए.टी.पी. बना कर बाहर फैंकती जाती है। इस तरह एक ए.टी.पी.सिन्थेज एक चक्कर में लगभग तीन ए.टी.पी., एक मिनट में 18000, एक घंटे में दस लाख और एक दिन में ढ़ाई करोड़ से ज्यादा ए.टी.पी. बनाता है। यह मोटर विश्राम की अवस्था में कम और परिश्रम की अवस्था में अधिक ए.टी.पी. बनाती है। शरीर में यदि ऊर्जा (ए.टी.पी.) की मांग बढ़ती है तो यह हाइड्रोजन ऑयन के प्रवाह को तेज कर अपनी घूमने की गति बढ़ा लेती है और ए.टी.पी. का निर्माण भी बढ़ जाता है। यही है प्रकृति की सबसे अनूठी, सबसे जटिल और सबसे सूक्ष्म मोटर जिसके बिना हमारी सारी जीवन क्रियाएँ संभव ही नहीं हैं। ये जीवन की मोटर मनुष्य ही नहीं बल्कि सभी जन्तुओं और वनस्पतियों की कोशिकाओं में सर्वत्र विद्यमान हैं। इस Motor of Life की खोज, कार्य-प्रणाली का अध्ययन और चित्रण प्रोफेसर पॉल बॉयर (USA) और डॉ. जॉन वॉकर (UK) ने किया था जिनको इसके लिए सन् 1997 में नोबेल पुरस्कार मिला था।
Overall glucose tally sheet
Glycolysis
Output Total
2 ATP in 4 ATP ------> 2 ATP
2 NADH ------> 6 ATP
Krebs Acid Cycle
8 NADH
2 FADH2
2 ATP ------> 2 ATP
Electron Transport Chain + ATP synthetase
3 X 8 NADH ------> 24 ATP
2 X 2 FADH2 -----> 4 ATP
TOTAL
36 or 38 ATPs per Glucose