Friday, November 26, 2010

नेहरू-एडविना : परिपक्व प्रेम की मिसाल

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंड़ित जवाहरलाल नेहरू और उनके जीवन से जुडे कई प्रसंगों को तो हम जानते हैं लेकिन उनके और एडविना माउंटबैटेन के बीच रिश्ते् के बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं। दोनों के बीच एक ऐसा गहरा रिश्ता था जिसे शब्दों से नहीं, सिर्फ भावनाओं से ही समझा जा सकता है। जहां पं. नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे, वहीं एडविना ब्रिटिश उपनिवेश के आखिरी वायसराय व स्वाधीन भारत के पहले गवर्नर-जनरल लॉर्ड माउंटबैटेन की पत्नी थीं। पं. नेहरू और एडविना की मित्रता या प्रेम को दुनियाभार के लोगों ने भले ही अपने-अपने नजरिए से देखा और परिभाषित किया हो, मगर इन दोनों के अपने ही सबसे करीबी रिश्तेदारों ने इनकी इस मित्रता को आत्मिक व परिपक्व प्रेम का नाम दिया है। एडविना के पति माउंटबैटेन, जिन्हें भली-भांति पता था कि उनकी पत्नी नेहरू जी से प्रेम करती है, इस बात पर फक्र महसूस करते थे कि एडविना ने विश्व के एक महान व्यक्ति को अपना प्रेमी चुना है।

माउंटबैटेन की पुत्री पामेला माउंटबैटेन एक जगह लिखती हैं, ''मेरी मां के पहले भी कई प्रेमी थे, इस बात ने मेरे पिता के हृदय को आघात पहुंचाया था, लेकिन नेहरू के मामले में यह बात किसी तरह से अलग थी। नेहरू के प्रति उनका खास लगाव था।" पामेला जून, 1948 में अपनी बड़ी बहन को लिखे माउंटबैटेन के पत्र का हवाला भी देती हैं। जिसमें वे लिखते हैं, ''वह (एडविना) और नेहरू एक-दूसरे के साथ बहुत प्रसन्न रहते हैं तथा वास्तव में सबसे अच्छे तरीके से एक-दूसरे को प्यार करते हैं।"

दूसरी ओर, नेहरू जी की बहन विजयलक्ष्मी पंड़ित ने माना था कि ''वह समय बहुत कठिन था। मेरे भाई एक महत्वपूर्ण काम कर रहे थे तथा ऐसे समय में उनकी पत्नी की मृत्यु हो जाने से वे पूर्णत: अकेले हो गए थे। उनके हृदय में एडविना माउंटबैटेन की बुद्धिमतापूर्ण संगति और उनके स्नेहिल व्यक्तित्व के प्रति प्रेम उत्पन्न हो गया। वे दोनों सदैव एक-दूसरे से बहुत विवेकपूर्ण चर्चाएं करते थे।" इसी प्रकार नेहरू जी की सुपुत्री इंदिरा गांधी ने लिखा है, ''मेरे पिता जिस प्रकार का जीवन व्यतीत करते थे, उस स्थिति में एक भिन्न प्रकार के व्यक्ति के साथ स्नेह-संबंध उनके तनावों को ढीला करने के लिए बहुत आवश्यक था। वे दोनों गंभीर, बौद्धिक चर्चाएं करते थे और मेरे पिता एडविना को बहुत प्याथर करते थे।"

नेहरू, एडविना और माउंटबैटेन एक-दूसरे को पत्र लिखा करते थे। एडविना के पति लॉर्ड माउंटबैटेन नेहरू के इन पत्रों को 'प्रेम पत्र" की संज्ञा देते थे। इस बारे में उन्होंने स्वयं कहा था कि नेहरू जी मुझे तो टाइप किए हुए पत्र लिखते थे, लेकिन एडविना को वे हस्तलिखित पत्र लिखा करते थे। एडविना की मृत्यु के उपरांत भी उनके पति ने इन पत्रों को संभाल कर रखा था। माना जाता है कि इन तमाम पत्रों का वजन करीब 30 किलोग्राम था। इन पत्रों में फूलों की पंखुडियों भी होती थीं। जो पत्र एडविना ने पं. नेहरू को लिखे थे उनके बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिलती क्योंकि उनके बारे में नेहरू परिवार ने सार्वजनिक रूप में खुलासा नहीं किया।

एडविना सन् 1855 से 1865 की अवधि तक ब्रिटेन के प्रसिद्ध प्रधानमंत्री रहे लॉर्ड पामर्स्टन की वंशज थीं। एडविना की बालावस्था में ही उनकी मां की मृत्यु हो जाने के कारण वे मानसिक रूप से अंतर्मुखी तथा बहुत संवेदनशील हो गई थीं। शायद यही कारण था कि उनके हृदय में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति तभी से सहानुभूति व लगाव था जब सन् 1922 में उन्हें पहली बार भारत आने का अवसर मिला। यही वजह थी कि जब वे इंग्लैंड वापिस लौटीं और लॉर्ड माउंटबैटेन के साथ उनका विवाह हो गया, तब भी एडविना का लगाव भारत से बना रहा तथा वहां रहकर भी वे भारत, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उसके नेताओं के बारे में सोचती, पढ़ती एवं उत्सुकता से जानने की कोशिश करती रहती थीं। सन् 1936 में जब पं. नेहरू की पत्नी कमला नेहरू का देहांत हुआ उसी वर्ष लंदन के 'बोडले हेड" ने पं. नेहरू की आत्मकथा का प्रकाशन किया। जिसके संपादक थे वी। के। कृष्णमेनन। कृष्णमेनन एडविना और नेहरू दोनों के ही मित्र थे। एडविना की रूचि देखते हुए इन्होंने ही उन्हें यह पुस्तक पढ़ने को दी थी। नेहरू जी की आत्मकथा का अध्ययन करने के बाद एडविना की उनसे मिलने की इच्छा और बलवती हो गई थी।

विवाह के बाद एडविना को सन् 1945 में अपने पति माउंटबैटेन के साथ पुन: भारत आने का मौका मिला। इस मौके का फायदा उठाते हुए उन्होंने अहमदनगर किले में कैद पं. नेहरू से मिलने का प्रयास किया, परन्तु अंग्रेजी हुकूमत से उन्हें इस बात की अनुमति नहीं मिल सकी। उनकी यह इच्छा आगामी वर्ष में ही पूरी हो पायी जब मार्च, 1946 में माउंटबैटेन दंपति तथा पं. नेहरू सिंगापुर में थे। इसी दौरान एडविना और पं. नेहरू की प्रथम मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात ने जल्दी ही इन दोनों के बीच एक गहरी दोस्ती और प्रेम की नींव रख दी थी।

इस संदर्भ में "माउंटबैटेन : हीरो ऑफ अवर टाइम" के प्रसिद्ध लेखक रिचर्ड हो एक जगह लिखते हैं कि जिस खूबसूरत आदमी को एडविना ने पहली दफा देखा था वह शीघ्र ही उनकी जिंदगी का खास आदमी बन गया और अगले 14 सालों तक ऐसा ही बना रहा। पं. नेहरू सरलता से एडविना के लिए सबसे ज्यादा प्रिय एवं अकेले प्रेमी बन गए थे। उनका यह प्यार काफी गहरा और कई धरातलों पर प्रवाहित होता था। तत्कालीन राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समाज में भी इन दोनों का विशेष स्थान था। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद पं. नेहरू नितांत अकेले से पड़ गए थे। इसके अतिरिक्त सन् 1942 में अपनी पुत्री इंदिरा के विवाह के उपरांत तो उनका यह अकेलापन उन्हें और भी अधिक कचोटता होगा। अत: यह स्वाभाविक ही है कि ऐसी परिस्थितियों में उनके जीवन में एडविना जैसी महिला मित्र का आगमन उनके लिए काफी सुकून और प्रसन्नता प्रदान करने वाला रहा होगा। दूसरी ओर एडविना भी भावनात्मक रूप से पं. नेहरू के प्रति पहले से ही गहरा लगाव अनुभव किया करती थीं। इस प्रकार दोनों के बीच प्रगाढ़ मित्रता का हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।

अपने समय के संगी-साथियों, आजादी की जंग में देश के बड़े-बड़े नेताओं की कुर्बानी, देश के बंटवारे की आग व देश की आजादी का अविस्मरणीय स्वर्णीम अवसर, स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री के रूप में देश को दशा व दिशा प्रदान करना आदि जैसी बड़ी व महत्वपूर्ण घटनाओं के समय पं. नेहरू को जिस सहारे और साथी की आवश्यकता थी, उसकी कमी कदाचित एडविना ने ही पूरी की थी। एडविना और नेहरू के बीच जो प्या र था उसमें बहुत गंभीरता व परिपक्वता थी कदाचित् यही कारण था कि माउंटबैटेन सब कुछ जानते और समझते हुए भी उनके बीच दीवार नहीं बने।

एडविना और पं. नेहरू ने अपना काफी समय भारत के राष्ट्रपति भवन, शिमला स्थित वायसराय भवन तथा इंग्लैंड के ब्रॉडलैंड आदि के वन-उपवनों आदि जैसे स्थानों पर एक-साथ व्यतीत किया था। पं. नेहरू जब भी इंग्लैंड जाते, तो व्यस्तता के बावजूद अपना कुछ समय एडविना के लिए अवश्य निकाल लेते थे। सन् 1949 में जब जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रमंडल सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए इंग्लैंड पहुंचे, तो वहां भी जब कभी मौका मिलता, दोनों साथ-साथ समय बिताकर बिछड़ने की कमी पूरी किया करते थे। वर्ष 1959 में नेहरू जी का जन्मदिन भी एक ऐसा ही अवसर था, क्योंकि इस वर्ष 14 नवंबर को नेहरू जी के 70 वें जन्मदिन की खुशी में एडविना ने रात्रि-भोज का आयोजन किया था।

स्वतंत्रता के बाद लॉर्ड माउंटबैटेन गवर्नर-जनरल के अपने पद से मुक्त होकर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को कार्य भार सौंपकर वापिस जाने लगे, तो उस समय उनके सम्मान में दिए जाने वाले विदाई भोज के समय पं. नेहरू को बोलने के लिए कहा गया। उस दौरान दिए गए भाषण में अन्य बातों के अलावा जब एडविना का जिक्र आया, तो नेहरू जी एक क्षण रुक कर एडविना की तरफ मुखातिब होकर बोले, 'देवताओं अथवा किसी महान देवी ने आपको सुंदरता, बुद्धि, शालीनता, आकर्षण तथा जीवन-शक्ति का महान उपहार प्रदान दिया है ......... तथा इन गुणों की स्वामिनी आप एक महान नारी हो, भले ही आप कहीं भी चली जाओ। यह प्रकृति का नियम है कि जिनके पास पहले से ही बहुत कुछ हो, उन्हें और भी मिल जाता है तथा उन्होंने आपको एक ऐसी चीज भी प्रदान की है जो इन गुणों से भी ज्यादा विरल एवं श्रेयस्कर है - मानवीय स्पर्श, मानवजाति के प्रति प्रेम, उनकी सेवा की भावना जो पीड़ित हैं, मुश्किलों में हैं। और ........... गुणों का यह विस्यमकारी मेल आपको एक जाज्वल्यमान व्यक्तित्व तथा घाव भरने वाला मृदु स्पर्श प्रदान करता है। जहां भी आप जाती हो, वहीं लोगों को हौसला प्राप्तर हो जाता है, आशा एवं प्रोत्साहन मिलता है। अगर भारत की जनता आपको दिल से चाहने लगे तथा आपको अपने में से ही एक समझने लगे और आपके यहां से जाने पर दु:खी हो जाए, तो क्या इसे आश्चर्यजनक माना जाएगा।"

एडविना के हृदय में भी नेहरू जी ने अपना एक विशेष स्थान बना लिया था। इसलिए उनके बिना रहना एडविना के लिए भी दुष्कर हो रहा था। अत: एडविना ने अपने सामाजिक कार्यों, रेड क्रॉस, बाल-रक्षा कोष और दक्षिण-पूर्व एशिया में सेंट जॉन एंबुलैंस के लिए स्वयं को सक्रिय बनाए रखा ताकि उन्हें जब-तब भारत आगमन का अवसर मिलता रहे और नेहरू जी से भी मुलाकात होती रहे। दरअसल, एडविना और नेहरू दोनों ही ऐसे मौकों की फिराक में रहते थे जिससे दोनों एक साथ समय व्यतीत कर सकें। सन् 1951 में जब एडविना भारत में थीं तो नेहरू जी ने कश्मीर यात्रा का अपना जो कार्यक्रम बनाया था उसमें एडविना भी उनके साथ थीं।

इसी प्रकार सन् 1960 में गणतंत्र दिवस के मौके पर भी पं. नेहरू ने एडविना को पत्र लिखकर उन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण दिया। जिसे उन्होंने हमेशा की तरह सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस बार गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि थे तत्कालीन सोवियत राष्ट्रपति मार्शल क्लेमेंट वोरोशिलोव। एडविना भी विशिष्ट व्यक्तियों वाले स्थान पर थीं। इस मौके पर एडविना नेहरू जी का हाथ पकड़कर वहां उपस्थित व्यक्तियों से मिली थीं। इसी प्रकार 29 जनवरी, 1960 का 'बीटिंग द रिट्रीट" समारोह भी एडविना और नेहरू जी ने साथ मिलकर ही मनाया था, परन्तु दुर्भाग्यवश यह इन दोनों की अंतिम मुलाकात थी। जिसके बारे में विधाता के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता था। अपनी इस अंतिम भारत यात्रा से लौटने के कुछ दिनों बाद ही वे अस्वस्थ हो गईं इसलिए उन्हें 20 फरवरी को उत्तरी बोर्नियो के जैसलटन नगर के एक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा, लेकिन अगले दिन जब वे काफी देर तक सोकर नहीं उठीं, तो उनकी खैर-खबर लेने के लिए देखा गया, लेकिन सबको यह जानकर काफी दु:ख हुआ कि एडविना का देहावसान हो गया था।

भारत में नेहरू जी को जिस समय एडविना की मृत्यु के बारे में पता चला, उस समय वे ब्रिटेन के विश्वविख्यात इतिहासकार एवं शिक्षाविद् अर्नाल्ड टॉयनबी के भाषण 'इतिहास के सांचे में भारत" के लिए 'इंडियन कॉउंसिल फॉर इंटरनेशनल अफेयर्स" में जाने की तैयारी कर रहे थे। यह दु:खद खबर सुनते ही नेहरू जी को गहरा धक्का लगा और वे बेसुध-निढाल से हो गए। उनकी जीवनी लिखने वाली मैरी सेटन भी वहां मौजूद थीं। इस बारे में वे लिखती हैं, ''नेहरू जी का चेहरा भाव-शून्य हो गया था तथा ऐसा लग रहा था कि वे भीतर की गहराई में कहीं डूब गए हैं। उन्हें इस बात का कोई एहसास नहीं था कि उनके निकट कौन-कौन व्यक्ति हैं तथा वे क्या कर रहे हैं।"" परन्तु नेहरू जी ने शीघ्र ही जैसे-तैसे स्वयं को संभाला और कुछ सोचकर अर्नाल्ड टॉयनबी के भाषण में जाने का निर्णय लिया। बाद में भारतीय संसद ने एडविना को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और मौन भी रखा। सांयकाल में पं. नेहरू और उनकी पुत्री इंदिरा गांधी ने चर्च में जाकर भी एडविना की आत्मा को शांति देने के लिए प्रभु से प्रार्थना की।

एडविना की यह इच्छा थी कि उनके अंतिम संस्कार के लिए उनका शव दफनाया न जाए, बल्कि सागर में प्रवाहित कर दिया जाए। तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने एडविना की यह इच्छा पूरी करने का फैसला किया। जब यह बात पं. नेहरू को पता चली, तो उन्होंने भारतीय नौ-सेना के एक युद्धपोत 'त्रिशूल" को फौरन ब्रिटेन के लिए रवाना कर दिया। जिस समय एडविना को जल समाधि दी गई और ब्रिटेन की ओर से फूल मालाएं अर्पित की गईं, उस नेहरू जी की ओर से भी भारतीय नौ-सेना के त्रिशूल से पुष्पार्पण किया गया था।

अपनी इस विशेष मित्र को खोकर नेहरू जी को गहरा आघात गा था। एडविना की मृत्यु के बाद उनकी और एडविना की लगभग 15 साल पुरानी मित्रता व प्रेम भौतिक रूप से समाप्त हो गया था। इसके बाद नेहरू जी भी बहुत अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाए तथा 27 मई, 1964 में उनकी भी मृत्यु हो गई।

वो मजनूँ-सा मिट जाए ऐसा नहीं है

वो मजनूँ-सा मिट जाए ऐसा नहीं है


(लव गुरू प्रोफेसर मटुकनाथ एवम् उनकी शिष्या, प्रेमिका और पत्नि जूली)

वो मजनूँ-सा मिट जाए ऐसा नहीं है
कि मुझ में मगर अक्से – लैला नहीं हैं
गुज़र ही गई उम्र सुहबत में लेकिन
मेरे दिल में क्या है, वो समझा नहीं है
मेरे वासिते वो जहाँ छोड़ देगा
ये कहने को है, ऐसा होता नहीं है
है इक़रार दिल में और इन्कार लब पर
वो कहता है फिर भी कि झूठा नहीं है
उसे प्यारी लगती है सारी ही दुनिया
मैं सोचूँ वो क्यूँ सिर्फ़ मेरा नहीं है
मैं इक टक उसे ताकती जा रही हूँ
मगर उस ने मुड़ कर भी देखा नहीं है
वो ख़ुशियों में शामिल है मेरी पर उस को
मेरे ग़म से कुछ लेना - देना नहीं है।
फ़रेब उसने अपनों से खाये हैं इसने
उसे मुझ पे भी अब भरोसा नहीं है
हो उस पार “कमसिन” कि इस पार लग जा
मुहब्बत का दरिया तमाशा नहीं है


कृष्णा कुमारी

आप फिर भी ख़फ़ा हैं तो हम क्या करें?


(उपमुख्यमंत्री चंद्रमोहन उर्फ चांद मुहम्मद और अनुराधा बाली उर्फ़ फ़िज़ा...)
हम ने कर ली मनाने की कोशिश हज़ार, आप फिर भी ख़फ़ा हैं तो हम क्या करें?
क्या है शक की दवा, हम अगर आप के, सोच में बा-ख़ता हैं तो हम क्या करें?

ख़ुश हैं, नाख़ुश हैं हम, आप को इस से क्या, क्यूँ गवारा करें कोई दख़्ल आप का,
अपनी नज़रों में हम भी शहंशाह हैं, आप ख़ुद में ख़ुदा है तो हम क्या करें?




हम कभी घर से निकलें अगर काम से, या टहलने ही चल दें घड़ी दो घड़ी,
हाथ रखते हैं दिल पर हमें देख कर, आप भरते हैं आहें तो हम क्या करें?

आप कहते हैं हम आप को भा गये, जान हम पर निसार आप करने लगे,
मस्अला है ये ज़ाती ज़नाब आपका, आप हम पर फ़िदा हैं तो हम क्या करें?



आप की हाँ में हाँ हम मिलाते रहे, और कैसे करें आप को मुतमइन,
आप ने जो कहा हम ने बस वो किया, फिर भी हम बेवफ़ा हैं तो हम क्या करें?

हम हैं ‘कमसिन’ हंसी, ख़ुशअदा, ख़ुशअमल, तो क़ुसूर इस में कहिए हमारा है क्या,
हम पे उठती हैं गर आप के शहर में, इसलिये बदनिगाहें तो हम क्या करें?



उस के बिन बेगाना अपना घर लगता है


उस के बिन बेगाना अपना घर लगता है
अंजाना सा मुझको आज नगर लगता है
पल, महीनों से और घड़ियाँ बरसों सी गुज़रें
सदियों लम्बा तुम बिन एक प्रहर लगता है
दिन-दिन बढ़ता देख के उसका दीवानापन
उससे प्रेम जताते भी अब डर लगता है
मुझ में यूँ उसका खो जाना ठीक नहीं, वो
भूल जाएगा इक दिन अपना घर लगता है
वो हर फ़न का माहिर शख्स़ है साथी मेरा
यूँ मुझ से जलता हर एक बशर लगता है
यूँ तो उस पर बलिहारी है तन-मन लेकिन
उस के जुनूँ से थोड़ा-थोड़ा डर लगता है
उससे

जाकर तुम ही कह दो, अरी हवाओं!
उस के बिन अब जीना ही दूभर लगता है
कितने दर्द छुपे हैं उस की मुक्त हँसी में
मुझ को ऐसा जाने क्यूँ अक्सर लगता है
कहने को तो प्रेम के है बस ढ़ाई आखर
पढ़ने में तो इन को जीवन भर लगता है
उसकी मूरत है अब मेरे मन-मंदिर में
उस का दर ही अब मुझ को मंदर लगता है
प्रेम की आग में वर्ना बुत वो पिघल ही जाता
“कमसिन” उसका का तो दिल ही पत्थर लगता है

कृष्णा कुमारी कमसिन

Sunday, November 21, 2010

स्वर्गीय फिल्मी मंत्री मंडल

देवता इंजीनियर बने तो ??:

ब्रह्मा : सिस्टम इन्स्टॉलर   आमिर               

3 ईडियट्स






विष्णु : सिस्टम सपोर्टर    सलमान   

हम आपके हैं कौन? 






महेश : सिस्टम प्रोग्रामर       अमिताभ

तीन पत्ती






नारद : डाटा (दुल्हन) ट्रांसफर     शाहरुख 

दिल वाले दुल्हनियां ले जायेंगे



यम :  सिस्टम टरमिनेटर      अमरीश 

कोयला













मेनका : सिस्टम वायरस ..... करीना

डोन

Friday, November 5, 2010

सफलता का मंत्र : प्रबल इच्छा से बिलगेट्स बनते है

Posted जनवरी 27, 2010 by Jayanti Jain
प्रबल इच्छा क्या है ? प्रबल इच्छा का तात्पर्य उस दृढ़ निश्चय से है जो हमें किसी लक्ष्यप्राप्ति के लिए करता होता है। यह लक्ष्य शक्ति, ओहदा, धन या ऐसी ही अन्य कोई वस्तु हो सकती है। कुछ बड़ा पाने या करने के लिये महत्त्वाकांक्षा अनिवार्य है। जीवन में कुछ बड़ा करने का दृढ़ निश्चय।

एक स्कूली छात्र ने सॉफ्टवेयर की कम्पनी शुरू की – माइक्रो सॉफ्ट। इसी बीच इस छात्र ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। जब वह अपने स्नातक पाठ्यक्रम के द्वितीय वर्ष में था, कम्पनी ने बहुत बड़ा लाभ कमाना शुरू किया । उसकी प्रबल इच्छा थी कि वह अरबपति बने। उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी क्योंकि कम्पनी का काम बढ़ गया था। उसने अपने लक्ष्य को पहचाना और अपने जीवन के महत्त्वाकांक्षी कार्य को बीस वर्ष में पूरा कर लिया। उसकी प्रतिदिन आय वर्ष 1998 में आठ सौ करोड़ थी। आज वह इस धरती का सबसे धनी व्यक्ति है। कौन है वह महान् व्यक्ति ?-----वह बिलगेट्स है।

क्या प्रबल इच्छा, उत्साह एवं साहस के अभाव में तेनसिंह और हिलेरी एवरेस्ट पर्वत की चोटी पर चढ़ने में सफल हो पाते?

कैसे पाएँ अपनी प्रार्थना का प्रतिउत्तर ?
जनवरी 5, 2010

मैने शक्ति मांगी और प्रभु ने कठिनाईयाँ दी
ताकि मैं मजबुत बनूँ।
मैने बुद्धि मांगी और प्रभु ने मुझे समस्याएँ दी
ताकि मैं उपाय खोजूँ।
मैने समृद्धि माँगी और प्रभु ने मुझे ताकत व मस्तिष्क दिये
ताकि मैं प्राप्त कर सकूँ।
मैने साहस माँगा और प्रभु ने मुझे खतरे दिये
ताकि मैं जीत सकूँ।
मैने धैर्य मांगा और प्रभु ने मुझे ऐसी स्थिति दी
कि मुझे मजबूरन इन्तजारी करनी पडे।
मैने प्रेम मांगा और प्रभु ने मुझे दुखी साथी दिये
ताकि मैं सेवा कर सकूँ।
मैने तेरी कृपा चाहीं और प्रभु ने मुझे अवसर दिये।
जो मैने चाहा वह मुझे कभी न मिला
लेकिन जिसकी आवश्यकता थी वह सदा मिला।


इस तरह मेरी प्रार्थना सुनी गई।


 माइकल जेक्सन और बिरजू महाराज में अंतर


पश्चिमी व पूर्वी नृत्य शैली में मूलभूत अन्तर है। भारतीय संगीत व नृत्य जीवन को आनन्दित करता है। भारतीय नृत्य जीवन में खुशी पैदा करते है। शास्त्रीय नृत्य जीवन में नये आयाम खोलते है। अन्तर्मन की प्रज्ञा को विकसित करते है। यह हमें जीवन से जोड़ती है।जबकि पश्चिमी नृत्य व्यक्ति को मदहोश करता है। यह स्वयं को भूलने की शैली है। जबकि पश्चिमी नृत्य अपने को सुलाने में मदद करते है। भारतीय संगीत मधुर होता है। जबकि पश्चिमी संगीत तीव्र ध्वनि उत्पन्न करता है। तभी तो माइकल जैकसन बहुत बड़े नर्तक होकर भी अवसाद के शिकार होते है। और बिरजू महाराज विपरित स्थितियों में भी हंसने में सक्षम होते है।

संगीत एवं नृत्य भीतर को उघाड़ता है तो बदले में भी उधड़ने की खुशी मिलती है तो दूसरे में स्वयं से जुड़ने का आनन्द है। भारतीय नृत्य अन्त में ध्यान पैदा करते है। ईश्वर साक्षात्कार में सहायक होते है।

नृत्य जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। व्यक्ति नृत्य करते हुए पैदा होता है। माँ के गर्भ से आते हुए हाथ पाँव हिलाना ही नृत्य है। एवं नृत्य करते हुवे ही संसार से विदा लेता है। मरते वक्त छटपटाना नृत्य के अतिरिक्त क्या है? भारतीय देवों में लोकप्रिय देवता शिव सदैव नृत्य करते रहते है इसलिए उन्हें नटराज कहते है।

Wednesday, November 3, 2010

सफलता के रहस्य

सफलता के रहस्य प्रथम भाग


सामान्यत: लोग यह समझते हैं कि स्मरण शक्ति, बुद्धिमत्ता और शैक्षणिक क्षमता ईश्वर की ही देन है और इनमें वृद्धि की सम्भावना भी नहीं है। लेकिन यह यथार्थ नहीं है, जिस तरह आप शरीर-गठन करने और षट-बन्ध उदर विकसित करने हेतु व्यायाम-शाला जाते हैं,

आसन, योग तथा कसरत करते हैं, पौष्टिक आहार लेते हैं और मनचाही बलिष्ट मांसल देह प्राप्त करते हैं, ठीक उसी तरह आप कई तरीकों से जैसे न्यूरोबिक्स (दिमागी कसरत), स्मृति विज्ञान (नेमोनिक्स) या समुचित पोषक तत्वों के सेवन से अपने मस्तिष्क की क्षमताओं में अभूतपूर्व वृद्धि कर सकते हैं। वैसे भी मानव के मस्तिष्क में अपार शक्ति संचित है। कई वैज्ञानिक तो यहां तक कहते हैं कि आज तक मनुष्य ने 7 प्रतिशत से ज्यादा अपने मस्तिष्क का उपयोग किया ही नहीं है।
इसका यह मतलब यह भी हुआ कि हमारे मस्तिष्क में अभी भी ऐसी अनेक शक्तियाँ या रहस्य हैं जिन्हें अभी हमें अभी खोजना है। आजकल वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क की क्षमताओं में अपार वृद्धि करने हेतु कई रहस्यमयी तकनीकों और पोषक तत्वों की खोज कर ली है। आज हम इन सारे रहस्यों से चिलमन उठा देंगे, आज हम सारे भेद खोल देंगे। आज आप जान जायेंगे कि मस्तिष्क किस प्रकार काम करता है, किस तरह आप स्वयं को बुद्धिमान, विद्वान और सफल बना सकते हैं तथा कैसे आप अपनी स्मरण शक्ति को चाकू की धार जैसा पैना बना सकते हैं। आज हम आपको यह भी बता देंगे कि कैसे आप हर परीक्षा में अपने सारे प्रतिद्वंदियों को पछाड़ कर सर्वोच्च अंक प्राप्त करेंगे तथा कैसे आप हर परीक्षा के प्रश्न पत्रों को चुटकियों में हल कर लेंगे। आज के बाद कैसे सफलता आपके कदम चूमेगी। आज हम और आप मिल कर आपकी सफलता के लिए नई इबारत लिख देंगे।

आज यहां हम कुछ महान पोषक तत्वों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे जिनका सेवन आपकी स्मरण शक्ति, विद्वता, पठन क्षमता, चतुराई, दूरदर्शिता, कल्पनाशीलता, सृजनात्मकता, एकाग्रता, परिपक्वता, निर्णय क्षमता, व्यवहार कुशलता, सहनशीलता, सकारात्मक प्रवृत्ति, मानसिक शांति, बुद्धिमत्ता और शैक्षणिक क्षमता में अभूतपूर्व, असिमित, अविश्वसनीय, अचूक तथा अपार वृद्धि करेगा।





ओमेगा-3 या ओम-3 वसा अम्ल नाड़ीतंत्र के प्रधान मंत्री
ओमेगा-3 बहु असंतृप्त वसा अम्ल है यानी इनमें एक से ज्यादा द्वि-बंध होते हैं। ओमेगा-3 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रंखला होती है जिसके एक सिरे से, जिसे ओमेगा एण्ड कहते हैं, मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से, जिसे डेल्टा एण्ड कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) जुड़ा रहता हैं। इनमें पहला द्वि-बंध कार्बन की लड़ के मिथाइल या ओमेगा सिरे से तीसरे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इन्हें ओमेगा-3 वसा अम्ल कहते हैं। हमारे मस्तिष्क का 60% भार वसा होता है और इसका आधा ओमेगा-3 वसा अम्ल डोकोसे-हेक्जानोइक एसिड (DHA) 22:6 n-3 का होता है। दृष्टि पटल का 50% भार डोकोसे-हेक्जानोइक एसिड (DHA) 22:6 n-3 का होता है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि ओमेगा-3 वसा अम्ल मस्तिष्क के लिए कितना महत्वपूर्ण है। ओमेगा-3 वसा अम्ल दो प्रकार के होते हैं ।



ओमेगा-3 वसा डी.एच.ए. और मस्तिष्क
अब यह एक स्थापित तथ्य है कि ओमेगा-3 वसा अम्ल डी.एच.ए. मस्तिष्क और (आंखों के) दृष्टि पटल के विकास, संरचना एवं कार्य प्रणाली के लिए अति विशिष्ट, अति आवश्यक व अति महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क और आंखों में डी.एच.ए. भारी मात्रा में संचित होता है ताकि मस्तिष्क व नाड़ियों की कार्य प्रणाली एवं दृष्टि की तीक्ष्णता उत्कृष्ट बनी रहे। डी.एच.ए. नाड़ी कोशिकाओं की भित्तियों या झिल्लियों के फोस्फोलिपिड घटक में संचित होकर इन्हें विशिष्ट गुण प्रदान करता है। अनोखी संरचना वाले डी.एच.ए. में 22 कार्बन की एक लड़ होती है जिसमें 6 प्राकृतिक द्वि-बंध होते हैं। इनका विन्यास सिस (cis) होने के कारण जहां भी द्वि-बंध बनता है यह लड़ मुड़ जाती है और इसके अणु को एक विशेष मुड़ी हुई आकृति देते हैं, जैसा हमने चित्र में दिखाया है। डी.एच.ए. की यह विशेष संरचना और  अत्यंत  कम  गलनांक -500 सेल्सियस (यानी शून्य से 500 सेल्सियस कम तापमान पर भी यह तरल रहता है) मस्तिष्क के स्लेटी द्रव्य (ग्रे मेटर) और अन्य सभी नाड़ी कोशिकाओं की झिल्लियों को वांछनीय तरलता प्रदान करती हैं। डी.एच.ए. इसके अलावा इन झिल्लियों को लचीलापन, संपीड़न, पारगम्यता और नियंत्रक प्रोटीन से संवाद व समन्वय भी स्थापित करते हैं। डी.एच.ए. के उपरोक्त महान बुनियादी गुण, अनोखी कार्य प्रणाली और आयन सरिता (ion channels) का नियंत्रण ही नाड़ी तंत्र में तीक्ष्ण स्मृति, तीव्र आयन संकेतन प्रणाली, प्रखर बुद्धि और प्रबल शैक्षणिक क्षमता सुनिश्चित करते हैं।
गर्भावस्था की आखिरी तिमाही से लेकर शिशु की उम्र दो वर्ष होने तक शिशु के मस्तिष्क, आंखों और संपूर्ण नाड़ी तंत्र में डी.एच.ए. का भारी मात्रा में संचयन होता है। लेकिन इसके बाद भी मस्तिष्क, आंखों और संपूर्ण नाड़ी तंत्र के स्निग्ध संचालन हेतु आजीवन डी.एच.ए. की आवश्यकता रहती है। शरीर में सबसे ज्यादा डी.एच.ए. का संचय दृष्टि पटल की बाहरी परत (जिसमें में रोडोप्सिन होता है जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील एक रंग द्रव्य है जो प्रकाशीय बिंब का अभिग्रहण करता है) की कोशिकाओं की झिल्लियों के फोस्फोलिपिड घटक में होता है। इसीलिए प्रसव के बाद स्त्री के डी.एच.ए. भण्डार लगभग रिक्त हो जाते हैं, जिनके पुनर्भरण में लगभग 3-4 वर्ष लग सकते हैं।
यदि स्त्रियों को तेजस्वी व तेज तर्रार शिशु की कामना है तो गर्भावस्था में ओमेगा-3 की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना अति आवश्यक है। नार्वे के वैज्ञानिक डॉ. शिलोट ने यह सिद्ध किया है कि गर्भावस्था में यदि पर्याप्त ओमेगा-3 वसा अम्ल दिये जायें तो जन्म लेने वाला शिशु होनहार, विद्वान और प्रखर बुद्धि वाला होता है। पर्याप्त ओमेगा-3 का सेवन करने वाले लोगों में अवसाद, शीज़ोफ्रेनिया, साइकोसिस आदि रोगों की संभावना बहुत कम होती हैं।
आवश्यक वसा अम्ल ए.एल.ए. का यकृत और अन्य ऊतकों में बीटा ऑक्सीकरण होता है, ऊर्जा उत्पन्न होती है तथा कार्बन डाई-ऑक्साइड, जल व ए.टी.पी. बनता है। ए.एल.ए. का कुछ प्रतिशत दीर्घीकृत तथा असंतृप्तीकृत होकर डी.एच.ए. में परिवर्तित हो जाता है।
ई.पी.ए.
ई.पी.ए. भी ओमेगा-3 वसा अम्ल है जिसमें 20 कार्बन की लड़ होती है तथा 5 प्राकृतिक द्वि-बंध होते हैं। शोधकर्ता बताते हैं कि ई.पी.ए. का नाड़ी तंत्र की संरचना में विशेष योगदान नहीं है परंतु यह मस्तिष्क के रक्त संचार में वृद्धि करते हैं, विशिष्ट प्रोस्टाग्लेंडिन हार्मोन का निर्माण करते हैं जो एक विशिष्ट सूचना-अणु की भांति काम करते हैं और मस्तिष्क में सूचनाओं के संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, मस्तिष्क के कई कार्यों जैसे इन्फ्लेमेशन पर अंकुश रखते हैं और रक्षा प्रणाली को मजबूत रखते हैं। इस तरह ई.पी.ए. मस्तिष्क की कार्य प्रणाली और संदेश संचार के लिए अत्यंत आवश्यक है। शीजोफ्रेनिया रोग के उपचार में भी ई.पी.ए. बहुत महत्वपूर्ण है।
मस्तिष्क को सुचारु और सक्रिय रखने के लिए ओमेगा-6 भी आवश्यक होते हैं। शरीर में ओमेगा-6 और ओमेगा-3 का अनुपात 1:1 होना चाहिए। हमारे आधुनिक आहार में ओमेगा-3 की मात्रा नगण्य होती है और हमारे ज्यादातर तेल, फास्ट फूड, जंक फूड तथा दुग्ध उत्पाद ओमेगा-6 से भरपूर होते हैं अत: हम ओमेगा-3 वसा अम्ल की अल्पता या कमी से ग्रसित रहते हैं।
ओमेगा-3 वसा अम्ल नाड़ी कोशिकाओं को स्वस्थ और सक्रिय रखते हैं। यह नाड़ी कोशिकाओं की झिल्लियों पर स्थित अभिग्राहकों को सीरोटोनिन नामक नाड़ीसंदेश वाहकों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं जो मस्तिष्क की मनोदशा और मुद्रा अति प्रसन्न रखते हैं। ये हमारे मन को शांत रखते है। ये हमें चुस्त रखते हैं, किसी भी काम में आलस्य नहीं आता तथा क्रोध कोसों दूर रहता है। इनके सेवन से मन और शरीर में एक दैविक शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस तरह सीरोटोनिन हमें प्रसन्नता व खुशी प्रदान करते हैं अतः यह फील गुड रसायन कहलाता है।
ई.पी.ए. और डी.एच.ए. कोशिकीय संकेतन प्रणाली में सहायक
ऊपर आपने देखा कि डी.एच.ए. कोशिकाओं की झिल्लियों को किस प्रकार विशेष गुण प्रदान करते हैं। ये झिल्लियां ही कोशिका में विभिन्न तत्वों की आवाजाही तथा नाड़ी संदेश अभिग्रहण को नियंत्रित करती हैं और इस प्रकार विभिन्न कोशिकाएं आपस में संपर्क व समन्वय रखती हैं। यह डी.एच.ए. ही कोशिकीय संकेतन प्रणाली का प्रबंधन करता है। सैंकड़ों विशिष्ट अणु कोशिकीय संकेतन प्रणाली के कार्य को नियति देते हैं। ये अणु कोशिका के भीतर की विभिन्न संरचनाओं के बीच तथा विभिन्न कोशिकाओं और ऊतकों के बीच संकेतों का आदान-प्रदान करते हैं। कुछ लिप्यंतरण अणु कोशिका और जीन के बीच संवाद सुनिश्चित करते हैं।



कुछ अणु विशेष कोशिकीय कार्यों जैसे माइटोकोंड्रिया द्वारा ऊर्जा के उत्पादन, जीन को सक्रिय या शांत करना, विशेष प्रोटीन्स का निर्माण, ऑयन सरिताओं का नियंत्रण और शोथ-कारी मध्यस्त तत्वों के नियोजन को नियति देते हैं।

ऊर्जा के उत्पादन में सहायक कई किण्वक जैसे एडीनाइल साइक्लेज व प्रोटीन काइनेज-ए डी.एच.ए. द्वारा नियंत्रित होते हैं। डी.एच.ए. शोथ-कारक मध्यस्त तत्वों जैसे प्रोस्टाग्लेन्डिन ई2, थ्रोम्बोक्सेन्स और ल्यूकोट्राइन्स के निर्माण को अवरुद्ध करते हैं तथा शोथहर तत्वों जैसे लाइपोक्सिन, रिज़ोल्विन और मस्तिष्क के रक्षक न्यूरोप्रोटीन्स का निर्माण बढ़ाते हैं।


डी.एच.ए. कोशिकीय किण्वक सोडियम+/पोटेशियम एटीपे को भी नियंत्रित करते हैं जो ए.टी.पी. से ऊर्जा उत्पन्न कर सोडियम पंप को संचालित करते हैं, यह सोडियम पंप कोशिकाओं में सोडियम+/पोटेशियम+ आयन के



आवागमन को नियंत्रित करता है और मस्तिष्क की कोशिकाओं की सुरक्षा करता है। डी.एच.ए. का एक और लाभ यह भी है कि यह मस्तिष्क में फोस्फेटाइडिलसेरिन (पीएस) के स्तर को नियंत्रित करता है। फोस्फेटाइडिलसेरिन (पीएस) भी कोशिकाओं के रक्षक हैं।
डी.एच.ए. कोशिकाओं में केल्शियम की तरंगों या सरिताओं का नियोजन करते हैं। ये तरंगे कोशिकाओं के विभिन्न कार्य जैसे नाड़ी संदेश अभिग्राहकों के निर्माण, माइट्रोकोंड्रिया के कार्य, जीन्स को सक्रिय या शांत करना, मुक्त कणों से सुरक्षा और विकासशील मस्तिष्क में नाड़ियों को परिपक्व करती हैं।
डी.एच.ए. और ई.पी.ए. परऑक्सीजोम प्रोलीफरेटर-एक्टिवेटेड रिसेप्टर या पीपार PPAR नामक कोशिका संकेतन प्रणाली को भी नियंत्रित करते हैं। यह प्रणाली शोथकारी साइटोकाइन का निर्माण अवरुद्ध करती है, जिससे मधुमेह, एथ्रोस्क्लीरोसिस, ऑटो-इम्यून रोग, एल्झीमर, पार्किनसन्स आदि रोगों से शरीर को क्षति कम होती है।
सफलता के रहस्य द्वितीय भाग


कोलीन “स्मरण-शक्ति की बुनियाद”

मस्तिष्क में विद्यमान एसीटाइलकोलीन स्मरणशक्ति के लिए मुख्य नाड़ी संदेश वाहक रसायन है। मस्तिष्क में इसकी कमी स्मरणशक्ति को सीधा प्रभावित करती है। कोलीन ही शरीर में ऐसीटाइलकोलीन का निर्माण करता है। यह नाड़ी कोशिकाओं के बाह्य आवरण “माइलिन शीथ”का निर्माण भी करता है। एसीटाइलकोलीन के निर्माण के लिए विटामिन बी-1, बी-5, बी-12 और विटामिन सी भी आवश्यक होते हैं। कलेजी, अंडे, सूखे मेवे, ब्रोकोली, मुर्गा, सालमोन मछली, सोयाबीन आदि इसके प्रमुख स्रोत हैं।

कोलीन लेने से मस्तिष्क को बहुत लाभ मिलता है। ड्यूक विश्वविद्यालय के चिकित्सा कैंद्र में शोधकर्ताओं ने गर्भवती चुहियों को कोलीन खिलाया और पाया कि उनके शिशुओं का मस्तिष्क ज्यादा बड़ा, बुद्धिमान तथा विकसित था, उनकी बुद्धिमत्ता, स्मरणशक्ति और सीखने की क्षमता संपूर्ण जीवन काल में अच्छी रही। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि कोलीन स्मरणशक्ति और शैक्षणिक-क्षमता वृद्धि करता है और गर्भावस्था में इसके सेवन से शिशु के मस्तिष्क का विकास बहुत अच्छा होता है।

कोलीन को यदि पर्याप्त मात्रा में युवाओं को दिया जाये तो वह स्मरणशक्ति में असिमित वृद्धि करता है। फ्लोरेंस सेफोर्ड विश्वविद्यालय में 41 लोगों को 500 मि.ग्रा. कोलीन 5 सप्ताह तक दिया गया तो शोधकर्ताओं ने पाया कि उनकी बुद्धिमत्ता, विद्वता, शैक्षणिक प्रवीणता तथा स्मरणशक्ति में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। यह भी देखा गया कि यदि कोलीन को अन्य स्मृति वर्धक तत्वों जैसे पाइरोग्लूटामेट के साथ लिया जाये तो कम मात्रा में ही भरपूर लाभ मिलता है।

कोलीन नाड़ी कोशिका, इनके बाहरी आवरण और नाड़ीसंदेश अभिग्राहकों के निर्माण और रख रखाव के लिए भी आवश्यक है।

मेसाचुसेट्स तकनीकी संस्थान के डॉ. रिचर्ड वर्टमेन ने कहा है कि एसीटाइलकोलीन का निर्माण बढ़ाने वाली दवायें जैसे पाइरेसिटेम आदि को कोलीन के साथ ही लेना चाहिये वर्ना हो सकता है कि मस्तिष्क का सारा कोलीन एसीटाइलकोलीन के निर्माण में खर्च हो जाये और इस कोलीन की कमी के कारण नाड़ी कोशिकाओं का निर्माण बाधित हो जाये।

फोसफेटाइडिल कोलीन या पी.सी., जो लेसीथिन में पाया जाता है, रक्त से मस्तिष्क को जाने वाली दुर्गम राह सहजता से पार कर मस्तिष्क में आसानी से प्रवेश कर जाता है। शुद्ध कोलीन में मछली जैसी गंध होती है पर कोलीन से भरपूर लेसिथिन गंधहीन होता है, इसलिए लोग लेसीथिन लेना अधिक पसंद करते हैं। लेसीथिन के दानें और सम्पुट दवा विक्रेता के पास मिल जाते हैं।


मात्रा

कोलीन क्लोराइड

500 मि.ग्रा. -2 ग्राम प्रति दिन

लेसीथिन

5-10 ग्राम लगभग 1 बड़ी चम्मच प्रति दिन

फोसफेटाइडिल कोलीन

1-2 ग्राम प्रति दिन

सीटीकोलीन

500 मि.ग्रा. -1 ग्राम प्रति दिन

सीटीकोलीन

एक और रसायन सीटीकोलीन होता है, जो शरीर में जा कर कोलीन में परिवर्तित हो जाता है। यह मस्तिष्क में डोपामीन और अन्य नाड़ी संदेश वाहक रसायनों की मात्रा बढ़ाता है। इसका प्रयोग सिर की चोट और मस्तिष्क-आघात के रोगियों के उपचार में भी किया जाता है क्योंकि यह मस्तिष्क की कोशिकाओं पर रक्त-अल्पता के दुष्प्रभाव नहीं होने देता है। यह स्मरणशक्ति और शैक्षणिक क्षमता भी बढ़ता है।

डी.एम.ए.ई. (डाइमिथाइलअमाइनोईथेनोल)

डी.एम.ए.ई. का अच्छा स्रोत सरडीन मछली है। यह भी रक्त वाहिकाओं तथा मस्तिष्क के बीच की बाधाओं को सुगमता से पार कर मस्तिष्क में जल्दी से प्रवेश कर जाती है। मस्तिष्क में यह बुद्धिमत्ता और स्मृति बढ़ाती है।

डी.एम.ए.ई. मस्तिष्क में एसीटाइलकोलीन का निर्माण बढ़ाती है, तनाव कम करती है, एकाग्रता व शैक्षणिक क्षमता बढ़ाती है, मनोदशा को उत्कृष्ट रखती हैऔर मस्तिष्क को स्फूर्तिमान, सतर्क तथा उत्तेजित रखती है।

स्मरणशक्ति बढ़ाने के लिए डी.एम.ए.ई. की मात्रा 100-300 मि.ग्रा. प्रति दिन है, इसे सुबह या दोपहर में ही लें शाम को नहीं लें। इसका असर आने में 2 से 3 सप्ताह लगते हैं। परंतु यह प्रतीक्षा बहुत अच्छा परिणाम देकर जाती है।

पाइरोग्लूटामेट और फोस्फेटाइडिलसेरीन

नाड़ीसंदेश-वाहकों की संचार-क्षमता सुचारू व सक्रिय अभिग्राहक-स्थलों पर निर्भर करती है। अभिग्राहक-स्थलों को भलीभांति सक्रिय रहने के लिए दो पोषक तत्व फोस्फेटाइडिलसेरिन और ओमेगा-3 फैट डी.एच.ए.नितांत आवश्यक हैं। पाइरोग्लूटामेट ऐसीटाइलकोलीन अभिग्राहक-स्थलों की संख्या और उनका अभिग्रहण बढ़ाते हैं जिससे मस्तिष्क की संदेश अभिग्रहण-क्षमता में वृद्धि होती है। इस तरह ये स्मृति, बुद्धिमत्ता और शैक्षणिक-प्रवीणता में वृद्धि करते हैं।

पाइरोग्लूटामेट मस्तिष्क का “सूचना एवं प्रसारणमंत्री”

पाइरोग्लूटामेट मुख्य अमाइनो-अम्ल है जो मस्तिष्क और स्पाइनल-द्रव्य में प्रचुरता से विद्यमान रहता है और स्मृति एवं मस्तिष्क के सभी क्रिया-कलापों में भारी सुधार लाता है। ये इतना ज्यादा असर दायक है कि इसके कई प्रतिरूपों से निर्मित औषधियां एल्ज़िमर्स रोग, जिसके मुख्य लक्षण शैक्षणिक दुर्बलता एवं स्मृति-दोष है, के उपचार में दी जाती हैं। इस परिवार की औषधियों जैसे पाइरेसिटेम आदि पर बहुत परीक्षण हुए हैं और शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पंहुचे हैं कि यह दुर्बल स्मृति वाले व्यक्तियों की ही नहीं बल्कि सामान्य व्यक्तियोंकी भी स्मृति, बुद्धिमत्ता और शैक्षणिक प्रवीणता में अभूतपूर्व सुधार आता है।

पाइरोग्लूटामेट के कार्य –

• एसीटाइलकोलीन के निर्माण मे सहायक हैं।

• ऐसीटाइलकोलीन के अभिग्राहक स्थलों की संख्या में वृद्धि करते हैं।

• मस्तिष्क के बांये और दांये गोलार्धों तथा मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों के बीच सम्पर्क, संवाद, सहयोग और समन्वय में वृद्धि करते हैं। और इस तरह यह स्मृति, बोधन शक्ति, शिक्षण-क्षमता और एकाग्रता बढ़ाते हैं यानी आपको बुद्धिमान और विद्वान बनाते हैं।

• पाइरोग्लूटामेट मछली, दूध, दही, मक्खन और सब्जियों में पाये जाते हैं।

फोस्फेटाइडिलसेरिन “स्मृति-अणु”

फोस्फेटाइडिलसेरिन जिसे “स्मृति-अणु”के नाम से भी जाना जाता है। यह सचमुच मस्तिष्क में उत्साह, स्फूर्ति और जोश भर देता है। यह फोस्फोलिपिड परिवार का सदस्य है और यकृत, रक्षा-प्रणाली, नाड़ियों तथा मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है।

इस पर बहुत शोध हुई है और शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पंहुचे हैं कि यह मस्तिष्क में प्रचुर मात्रा में होता है और स्मृति, मनोदशा, शैक्षणिक-क्षमता, तनाव-प्रबन्धन कौशल और एकाग्रता में वृद्धि करता है। यह मस्तिष्क की विभिन्न कोशिकाओं के बीच सम्पर्क, संवाद,समन्वय, संचारव सहयोग को सरल, सहज, स्निग्ध, सुचारु व सशक्तबनाता है क्योंकि यह नाड़ी कोशिका के बाह्य आवरण, एसीटाइलकोलीन के अभिग्राहक स्थलों के निर्माण का मुख्य “अणु” है।

वैसे तो यह थोड़ा बहुत हमारे शरीर में बनता रहता है, परंतु यह मात्रा पर्याप्त नहीं होती है । हमारे भरपूर कलेजी युक्त मांसाहारी भोजन खाने वालों को यह 50 मि.ली. तक प्रतिदिन मिल जाता है जबकि भोजन में भी यह बहुत कम होता है। आम शाकाहारी आहार से यह मात्र 10 मि.ली. प्रतिदिन ही मिल पाता है। हां नियमित इसकी प्रतिदिन की खुराक 100-300 मि.ग्रा. है ।

शोधकर्ताओं ने पाया कि यदि आहार में डी.एच.ए. अत्यंत कम दिया जाये तो मस्तिष्क के हिप्पोकेंपस, जो स्मरणशक्ति का केंद्र है, में फोस्फेटाइडिलसेरिन का स्तर बहुत कम हो जाता है।तथा जब डिमेंशिया के रोगी को फोस्फेटाइडिलसेरिन दी जाती है तो उसकी स्मृति और बोधन क्षमता में अपार वृद्धि होती है। इसका यह मतलब हुआ कि डी.एच.ए. हिप्पोकेंपस मेंफोस्फेटाइडिलसेरिन का स्तर बढ़ाता है और फोस्फेटाइडिलसेरिन स्मृति और बोधन क्षमता में भारी सुधार करता है।

जिंको बिलोबा रक्तसंचारवर्धक वस्मृतिवर्धक

जिंको बिलोबा पूर्वी देशों में हजारों वर्षों से स्मृतिवर्धक औषधि के रूप में प्रयोग में आती रही है। चीन के प्राचीन ग्रंथों के अनुसार 2800 बी.सी. से जिंको को औषधि के रूप में काम में लिया जा रहा है। जिंको मस्तिष्क को एकाग्रता देता है, ऊर्जावान बनाता है और मनोदशा प्रसन्न रखता है। जिंकोस्मृति-विकार, अवसाद, रक्तसंचार-दोष, दुर्बल विचारशीलता आदि में लाभप्रद है। इसमें दो मुख्य तत्व फ्लेविनोइड्स और टरपेन लेक्टोन होते हैं।

जिंको बिलोबा एक बलवान प्रति-ऑक्सीकारक है, जो विटामिन ई और अन्य प्रति-ऑक्सीकारकों के साथ मिल कर मस्तिष्क की मुक्तकणों से रक्षा करता है।

जिंको नाड़ी-संदेशवाहकों का निर्माण करता है, एसीटाइलकोलीन के अभिग्राहकों को स्वस्थ रखने में सक्रिय भूमिका निभाता है। जिंको का मुख्य कार्य मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं का विस्तारण और बिंबाणु प्रेरक घटक(एक पदार्थ जो रक्त को गाढ़ा करता है) की कार्य प्रणाली में अवरोध पैदा करना है। इसका सीधा मतलब है कि यह मस्तिष्क को ऑक्सीजन और अन्य पोषक तत्वों की आपूर्ति बढ़ाता है।

नीदरलैंड के लिम्बर्ग विश्वविद्यालय के क्लेजनेन और पॉल निप्सचाइल्ड ने अपने प्रयोगों से सिद्ध किया है कि जिंको रक्त-संचार दोष के रोगियों की स्मृति, एकाग्रता, मनोदशा और ऊर्जा में वृद्धि करता है।

जिंको के सामान्यतः 40, 60 और 80 मि.ग्रा. के सम्पुट उपलब्ध हैं। सामान्यत: इसकी मात्रा 120-180 मि.ग्रा. प्रति दिन है यानी 60 मि.ग्रा. के 1 या 2 सम्पुट सुबह और शाम को लेना है। इसका असर आने में एक या दो महीने लग जाते हैं। यदि दो महीने बाद भी फायदा न हो तो मात्रा 240 मि.ग्रा. प्रति दिन कर देना चाहिए। चूंकि जिंको रक्त को पतला करता है अतः रक्त को पतला करने की दवाएं जैसे कॉमाडिन, हिपेरिन या एस्पिरिन लेने वाले सतर्कता बरतें।

एसीटाइल-एल-कार्निटीन मस्तिष्क का उत्कृष्ट ईंधन

अमाइनो एसिड एसीटाइल-एल-कार्निटीन मस्तिष्क का उत्कृष्ट ईंधन है। इसका एसीटाइल घटक एसीटाइलकोलीन (मुख्य नाड़ी संदेशवाहक) का निर्माण करता है। एसीटाइल-एल-कार्निटीन एक बलवान प्रति-ऑक्सीकारक है और मस्तिष्क को मुक्त-कणों से सुरक्षा प्रदान करता है और संपूर्ण नाड़ीतंत्र को स्वस्थ व युवा रखता है।

यह नई कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है और मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों के बीच संपर्क, संवाद और सहयोग बनाये रखता है। फोस्फेटाइडिलसेरीन के साथ लेने पर यह ज्यादा लाभप्रद है। इसकी 250-1500 मि.ग्रा. की खुराक प्रतिदिन भोजन से 1 घंटा पूर्व या 1 घंटा बाद लेना चाहिये। यह बहुत मंहगा हैतथा इसेमधुमेह, यकृत रोग या वृक्क रोग के मरीज को नहीं देना चाहिये।

सदाबहार पौधे में पाया जाने वाला रहस्यमय पूरक तत्व विनप्रोसेटीन

विनप्रोसेटीन सदाबहार के पौधों में पाये जाने वाली ऐसी औषधि है जो हमारी संज्ञानात्मकता या बोधन-क्षमता और स्मृति बढ़ाती है। यह मस्तिष्क का रक्त प्रवाह बढ़ाती है यानी मस्तिष्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाती है। इसकी 5 और 10 मिली. ग्राम. की टिकिया मिलती हैं। इसकी 5 मिली. ग्राम की टिकिया सुबह शाम को दी जाती है। बाद में आवश्कतानुसार मात्रा बढ़ाई जा सकती है।

ब्राह्मी या बकोपा मोनिएरा

ब्राह्मी का पौधा हिमालय की तराई में हरिद्वार से लेकर बद्रीनारायण के मार्ग में अधिक मात्रा में पाया जाता है। ब्राह्मी पौधे का तना जमीन पर फैलता जाता है। जिसकी गांठों से जड़, पत्तियां, फूल और बाद में फल भी लगते हैं। इसकी पत्तियां स्वाद में कड़वी और काले चिन्हों से मिली हुई होती है। ब्राह्मी के फूल छोटे, सफेद, नीले और गुलाबी रंग के होते हैं। ब्राह्मी के फलों का आकार गोल लम्बाई लिए हुए तथा आगे से नुकीलेदार होता है जिसमें से पीले और छोटे बीज निकलते हैं। ब्राह्मी की जड़ें छोटी और धागे की तरह पतली होती है। इसमें गर्मी के मौसम में फूल लगते हैं।

ब्राह्मी के गुण-दोष एवं प्रभाव

आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘भाव प्रकाश निघन्टू’ के अनुसार ब्राह्मी शीतल, हल्की, सारक, मेधाकारक (बुध्दि वर्धक) कसैली, कड़वी, आयुवर्धक रसायन, स्वर एवं कंठ को उत्तम करने वाली, स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली, कुष्ठ, पांडु, प्रमेह, रक्त विकार, खाँसी, विष, सूजन और ज्वर को हरने वाली होती है।

ब्राह्मी विशेष रूप से मस्तिष्क संबंधी रोगों में विशेष रूप से फायदेमंद पाई गई है। ब्राह्मी की मुख्य क्रिया मस्तिष्क एवं मज्जा तंतुओं पर होती है। यह मस्तिष्क को शान्ति और मज्जा को ताक़त देता है। इसलिए ब्राह्मी का प्रयोग मस्तिष्क एवं मज्जा तंतुओं के रोगों में करते हैं। अधिक मानसिक परिश्रम करने वाले लोगों को यह बूटी विशेष लाभकारी पाई गई है। मस्तिष्क की थकान एवं उन्माद में यह विशेष लाभ दर्शाती है।

ब्राह्मी घृत आयुर्वेद की एक दवा है जो सभी प्रमुख दवा कम्पनियों की मिलती है। रस रत्नाकर नामक आयुर्वेदिक ग्रंथ में लिखा है कि ब्राह्मी घृत को प्रतिदिन एक से दो तोला दूध में डालकर पीने से मनुष्य का कंठ सुधरता है और स्मरणशक्ति प्रबल हो जाती है। कठिन-से-कठिन शास्त्र भी एक बार पढ़ने से याद हो जाते हैं।

अन्य आयुर्वेद औषधियां

स्मरणशक्ति एवं बुद्धि बढ़ाने वाली कुछ अन्य जड़ी-बूटियाँ जैसे शंखपुष्पी, बच, शतावरी, ज्योतिष्मती, अश्वगंध,आंवला, शहद आदि और खाद्य-पदार्थों में अनार, बथुवा, जौ , लहसुन, सैंधा नमक, गाय का दूध और घी, मालकांगनी, बैंगन आदि बुद्धि-वर्धक हैं।

' योग चिंतामणि ' के अनुसार--- गिलोय, ओंगा, वायविडंग, शंखपुष्पी, ब्राह्मी, बच, सोंठ और शतावर इन सबको बराबर लेकर कूट-छानकर चूर्ण बनावें और प्रात: काल चार माशे मिश्री के साथ चाटें , तो तीन हजार श्लोक कंठस्थ करने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। निघंटु के अनुसार--- बच का एक माशा चूर्ण जल, दूध या घृत के साथ एक मास सेवन करने से मनुष्य पंडित और बुद्धिमान बन जाता है। चरक के अनुसार शंखपुष्पि विशेष रूप से बुद्धि-वर्धक है। साथ ही ' गायत्री मन्त्र ' का जप करने से भी बुद्धि में निखार आता है।

ग्लूटामीन एक और मस्तिष्क का ईंधन

ग्लूटामीन एक अमाइनो एसिड है जो मस्तिष्क के लिए सीधा ईंधन का कार्य करता है। ग्लूटामीन मस्तिष्क को अधिक सक्रिय बनाता है और किसी भी दुर्व्यसन से दूर रखता है।यह गाबा और ग्लूटामेट नामक नाड़ी संदेशवाहक बनने में सहायक है और स्मृतिवर्धक है। इसे 2-5 ग्राम प्रति दिन भोजन से 1 घंटा पूर्व या 1 घंटा बाद लेना चाहिये।

विटामिनबी ग्रुप “मस्तिष्क के घनिष्ट मित्र”

मस्तिष्क के लिए विटामिन बी अत्यंत आवश्यक हैं। यह मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाते हैं और हानिकारक मुक्त-कणों से मस्तिष्क की रक्षा करते हैं।

विटामिन बी कोशिकाओं को लिए ऊर्जा हेतु ग्लूकोज बनाते हैं, हमारी संज्ञानात्मकता या बोधन क्षमता बढ़ाते हैं और नाड़ी संदेश वाहक बनाने में सहायता देते हैं। संक्षेप में कहें तो विटामिन बी मस्तिष्क के सबसे अच्छे मित्र हैं। आइये नीचे देखते हैं ये किस प्रकार मित्रता निभाते हैं।

विटामिन बी1 (थायमिन)

थायमिन सम्पूर्ण नाड़ी तंन्त्र को स्वस्थ रखते हैं और मस्तिष्क को उर्जा देने हेतु कार्बोहाइड्रेट से ग्लूकोज का निर्माण करते हैं। इनके स्रोत दूध, गैंहूँ का चोकर, चावल, दालें, मुर्गा, मछली, कलेजी आदि हैं।

विटामिन बी3 (नायसिन)

स्मरणशक्ति बढ़ाता है। एक शोध में विभिन्न आयु केलोगों को 141 मि.ग्रा. प्रति दिन नायसिन दिया गया। सभी उम्र के लोगों की स्मरण शक्ति 10-40 % बढ़ी।

विटामिन बी5 पेन्टोथेनिक एसिड

मानसिक चेतना और स्मृतिवर्धक है। यह एसीटाइलकोलीन के निर्माण में भी सहायक हैं। आप रोजाना 250-500 मि.ग्रा. विटामिन बी5 का सेवन करके स्मरण शक्ति को प्रखर बना सकते हैं।

विटामिन बी6 (पाइरीडोक्सीन)

नाड़ी संदेशवाहक बनने में सहायता देते हैं।यह अमाइनो एसिड्स को सीरोटोनिन नामक नाड़ी संदेशवाहक में परिवर्तित कर देते हैं।सीरोटोनिन की कमी से अवसाद और अन्य मानसिक रोग होते हैं। एक शोध में यह पाया गया कि डिप्रेशन के 20% रोगी पाइरीडोक्सीन की कमी से ग्रसित थे। स्मरणशक्ति को तराशने के लिए 20-100 मिली. ग्रा. की मात्रा लेना चाहिये।

विटामिन बी12 (सायनाकोबाल्मिन)

विटामिन बी12 बोधन क्षमता, नाड़ी संदेश वाहकों के निर्माण, लाल रक्त-कणों के निर्माण, वसा अम्लों के चयापचय, नाड़ियों के बाहरी विद्युतरोधी आवरण माइलिन के निर्माण तथा नाड़ी कोशिकाओं के स्वस्थ व सक्रिय रहने के लिए आवश्यक है।

इसकी कमी वृद्धावस्था में होने वाली मानसिक दुर्बलता, भ्रम और असमंजसता का मुख्य कारण है। सामान्यत: इसकी मात्रा 10-100 माइक्रोग्राम प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा है। वृद्धावस्था और विभिन्न रोगों में ज्यादा मात्रा यानी 1000 माइक्रोग्राम प्रतिदिन दी जाती है।

फोलिक एसिड

भी मस्तिष्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है। इसकी प्रतिदिन की मात्रा 400 माइक्रोग्राम है।

मस्तिष्क और स्वास्थ्य को क्षतिग्रस्थ करने वाले खाद्य पदार्थ

आज हम आपको यह भी बता देते हैं कि कुछ खाद्य पदार्थ हमारे मस्तिष्क और शरीर दोनों के लिए ही बहुत हानिकारक हैं, हालांकि ये देखने में बड़े लुभावने, रंग-बिरंगे तथा स्वाद में बहुत लजीज़ होते हैं। पर ये आपको असफलता की गहरी खाई में ले जायेंगे। इनसे आपको परहेज करना ही होगा । आज के बाद आप इन हानिकारक खाद्य पदार्थों के सेवन की कल्पना भी नहीं करेंगे।

शराब और अन्य नशीले पदार्थ मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करते हैं। उच्च “रक्त-शर्करा सूचकांक” वाले खाद्य पदार्थ जैसे मैदा से बनी डबल रोटी, पाव, बन्स, बर्गर, पित्ज्ज़ा, पास्ता, पेटीज़, केक, पेस्ट्री, कुकीज़, ज्यादा मीठे खाद्य पदार्थ आदि के सेवन से रक्त-शर्करा के स्तर में भारी उतार-चढ़ाव होता है, जिससे मस्तिष्क शिथिल और चिढ़चिढ़ा हो जाता है। रक्त वाहिकाओं में खून के थक्के बनाने वाले रिफाइंड तेल से बने जंक फूड, बर्गर,कचौरियां, समोसे, चाट आदि का सेवन भी मस्तिष्क के रक्त संचार को कम करते हैं और हानिकारक है। निम्न लिखित हानिकारक खाद्य पदार्थों से पूर्ण परहेज रखें।

ट्रांस फेट व हाइड्रोजिनेटेड फैट (वनस्पति घी या देसी भाषा में डालडा)
मदिरा
कृत्रिम रंग
कृत्रिम शर्करा जैसे सेक्रीन, एस्पार्टेम (शुगर फ्री) इत्यादि
कार्बोनेटेड पेय पदार्थ
ज्यादा मीठे पेय पदार्थ
मैदा से बने बेकरी उत्पाद
धूम्रपान, जर्दायुक्त गुटका आदि


निचोड़

मस्तिष्क में होने वाली समस्त चयापचय क्रियाओं में वृद्धि, बुद्धि तथा स्मृति में अविश्वसनीय सुधार लाने के लिए हमने आपके आहार में थोड़ा परिवर्तन किया है, कुछ पोषक तत्व व औषधियां लेने की सलाह देर हैं ताकि आपके अध्ययन, आपके परिश्रम का आपको पूरा फल मिले, आपको सभी परीक्षाओं में आपके अन्य सहपाठियों से ज्यादा अंक प्राप्त हों, आपको सर्वोच्च स्तर (टॉप रैंक) प्राप्त हो, आप हमेशा सबसे आगे रहें और आपको मनचाहे कॉलेज में प्रवेश मिले। आपके लिए बनाये गये कार्यक्रम का निचोड़ इस प्रकार है।

1- ओमेगा-3 एक “सात सितारा पोषक तत्व” है। इसके लिए आप रोज 30 ग्राम अलसी का सेवन करें। पहले तो रोज अलसी को छोटे कॉफी ग्राइंडर में सूखा पीसें। पिसी अलसी को दूध या दही में मिला कर लें। इसे आटे में मिला कर रोटियां बनवा सकते हैं। इसे सलाद, उपमा, पोहे, सब्जी आदि फर भी डाल कर ले सकते हैं। इसे अंकुरित भी कर सकते हैं। आजकल “फ्लेक्सओमेगा” नाम से आधुनिक तकनीक द्वारा विशेष तौर पर विद्यार्थियों के लिए “जैविक” अलसी से तैयार किया रेडी टू ईट प्रोडक्ट बाजार में उपलब्ध है। इसका प्रयोग विद्यार्थियों के लिए बहुत सुविधाजनक है। शीघ्र ही अलसी के अन्य उत्पाद जैसे बिस्कुट, ब्रेड आदि बाजार और आपके कोचिंग इंस्टिट्यूट की केन्टीन में भी उपलब्ध होंगे। ओमेगा-3 के लिए मछलीहारी लोग सप्ताह में 3-4 बार सालमोन, मेकरेल, हेरिंग, हेलीबुट, सरडीन आदि मछलियां खा सकते हैं। याद रहे सभी मछलियों में ओमेगा-3 नहीं होता है।मछली के संपुट नहीं खायें तो ही अच्छा है।

2- पूरे वर्ष नियमित रूप से अच्छी मल्टीविटामिन की गोली खायें।

3- उपरोक्त वर्णित स्मृति व बुद्धि वर्धक पौषक तत्वों में से 2 या 3 तत्वों को चुन कर सेवन करें। कोलीन अति आवश्यक है। अच्छा यही होगा कि आप अपने चिकित्सक से परामर्श लें और औषधि-प्रपत्र प्राप्त करके किसी समीप के औषधि विक्रेता से अपनी दवाएं खरीदें।

शब्दकोष

मैंने उपरोक्त लेख हमारी जननी हमारी मातृभाषा हिन्दी में लिखा है। मैंने पूरी कोशिश की हैं कि इस लेख में पराई और विदेशी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कम से कम करूं। यह पराई भाषा नागिन के समान निरन्तर हमारी हिन्दी भाषा को डस रही है और हमारी युवा पीड़ी हिन्दी भाषा को भूलती जा रही है और हिंदी भाषा में ज्यादा से ज्यादा अंग्रेजी शब्दों की घुसपेठ जारी है। हमें इस सांस्कृतिक आतंकवाद का उन्मूलन करना ही होगा। आओ प्रण करें कि आज से हम हिंदी का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करेंगे। फिर भी आपकी सुविधा के लिए मैं नीचे शब्दकोष संलग्न कर रहा हूँ ताकि आप लेख को पूरी तरह समझ सकें।