Saturday, July 24, 2010

ये प्यार में डूबी हुई लड़कियां

ये प्यार में डूबी हुई लड़कियां

हम ने कर ली मनाने की कोशिश हज़ार, आप फिर भी ख़फ़ा हैं तो हम क्या करें?
क्या है  शक की दवा,   हम अगर आप के,  सोच में  बा-ख़ता हैं तो हम क्या करें?

ख़ुश हैं, नाख़ुश हैं हम, आप को इस से क्या, क्यूँ गवारा करें कोई दख़्ल आप का,
अपनी  नज़रों  में  हम   भी  शहंशाह हैं,   आप ख़ुद में ख़ुदा है   तो हम क्या करें?

                  

हम कभी घर से निकलें अगर काम से, या टहलने ही चल दें घड़ी दो घड़ी, 
हाथ रखते हैं दिल पर हमें देख कर,  आप भरते हैं आहें तो हम क्या करें?

आप कहते हैं  हम आप को  भा गये,  जान हम पर निसार  आप करने लगे,
मस्अला है ये ज़ाती ज़नाब आपका, आप हम पर फ़िदा हैं तो हम क्या करें?


                    

आप  की  हाँ  में    हाँ  हम  मिलाते  रहे,  और  कैसे करें  आप को   मुतमइन,
आप ने जो कहा हम ने बस वो किया, फिर भी हम बेवफ़ा हैं तो हम क्या करें?

हम हैं ‘कमसिन’ हंसी, ख़ुशअदा, ख़ुशअमल, तो क़ुसूर इस में कहिए हमारा है क्या,
हम पे  उठती हैं   गर  आप के  शहर में,   इसलिये   बदनिगाहें   तो   हम   क्या करें?


उप मुख्य मंत्री चांद मुहम्मद और फिज़ा


Friday, July 23, 2010

क्लिंटन की पसंदीदा शायरी

--कुलदीप अविनाश भंडारी



न कत्ल करते हैं, न जीने की दुआ देते हैं,


लोग किस जुर्म की आखिर ये सज़ा देते है ।


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यूं तो मंसूर बने फिरते हैं कुछ लोग,


होश उड जाते हैं जब सिर का सवाल आता है ।


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मुझे तो होश नही, तुमको खबर हो शायद ,


लोग कहते है कि तुम ने मुझ को बर्बाद कर दिया ।


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आखिर काम कर गए लोग ,


सच कहा और मर गए हम लोग ।


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बस्ती मे सारे लोग लहू मे नहा गए,


लह्ज़ा नए खीताब का कितना अजीब था ।


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देखिए गौर से रुक कर किसी चौराहे पर,


जिंदगी लोग लिए फिरते हैं लाशों के तरह ।


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इस नगर मे लोग फिरते है मुखौटे पहन कर,


असल चेहरों को यहां पह्चानना मुमकिन नही ।


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कुछ लोग ज़माने ऐसे भी तो होते हैं ,


महफिल में जो हंसते हैं, तन्हाई मे रोते हैं ।

Science Jokes


Physics Teacher: Isaac Newton was sitting under a tree when an apple fell on his head and he discovered gravity. Isn’t that wonderful?
Student: Yes sir, if he had been sitting in class looking at books like us, he wouldn’t have discovered anything.




Two factory workers are talking.

Woman: I can make the boss give me the day off.
Man: And how would you do that?
Woman: “Just wait and see.” She then hangs upside-down from the ceiling.

Boss comes in: What are you doing?
Woman: I’m a light bulb.
Boss: You’ve been working so much that you’ve gone crazy. I think you need to take the day off.

The man starts to follow her and the boss says: Where are you going?
The man says: I’m going home, too. I can’t work in the dark.


A man is talking to God.
The man: God, how long is a million years?
God: To me, it’s about a minute.
The man: God, how much is a million dollars?
God: To me it’s a penny.
The man: God, may I have a penny?
God: Wait a minute.




A little girl came home from school and said to her mother, “Mommy, today in school I was punished for something that I didn’t do.”

The mother exclaimed, “But that’s terrible! I’m going to have a talk with your teacher about this … by the way, what was it that you didn’t do?”

The little girl replied, “My homework.”






The students were lined up in the cafeteria for lunch. At the head of the table was a large pile of apples. The nun made a note, and posted on the apple tray: “Take only ONE. God is watching.”

Moving further along the lunch line, at the other end of the table was a large pile of chocolate chip cookies. A child had written a note, “Take all you want. God is watching the apples.”






Teacher: Why are you late, Joseph?
Joseph: Because of a sign down the road.
Teacher: What does a sign have to do with your being late?
Joseph: The sign said, “School Ahead, Go Slow!”






The teacher of the earth science class was lecturing on map reading.

After explaining about latitude, longitude, degrees and minutes the teacher asked, “Suppose I asked you to meet me for lunch at 23 degrees, 4 minutes north latitude and 45 degrees, 15 minutes east longitude…?”

After a confused silence, a voice volunteered, “I guess you’d be eating alone.”






“Isn’t the principal a dummy!” said a boy to a girl.
“Well, do you know who I am?” asked the girl.
“No.” replied the boy.
“I’m the principal’s daughter.” said the girl.
“And do you know who I am?” asked the boy.
“No,” she replied.
“Thank goodness!” said the boy with a sign of relief.






Teacher asked George: how can you prove the earth is round?
George replied: I can’t. Besides, I never said it was.

Friday, July 16, 2010

सफलता के रहस्य प्रथम भाग

सफलता के रहस्य प्रथम भाग


सामान्यत: लोग यह समझते हैं कि स्मरण शक्ति, बुद्धिमत्ता और शैक्षणिक क्षमता ईश्वर की ही देन है और इनमें वृद्धि की सम्भावना भी नहीं है। लेकिन यह यथार्थ नहीं है, जिस तरह आप शरीर-गठन करने और षट-बन्ध उदर विकसित करने हेतु व्यायाम-शाला जाते हैं,

आसन, योग तथा कसरत करते हैं, पौष्टिक आहार लेते हैं और मनचाही बलिष्ट मांसल देह प्राप्त करते हैं, ठीक उसी तरह आप कई तरीकों से जैसे न्यूरोबिक्स (दिमागी कसरत), स्मृति विज्ञान (नेमोनिक्स) या समुचित पोषक तत्वों के सेवन से अपने मस्तिष्क की क्षमताओं में अभूतपूर्व वृद्धि कर सकते हैं। वैसे भी मानव के मस्तिष्क में अपार शक्ति संचित है। कई वैज्ञानिक तो यहां तक कहते हैं कि आज तक मनुष्य ने 7 प्रतिशत से ज्यादा अपने मस्तिष्क का उपयोग किया ही नहीं है।
इसका यह मतलब यह भी हुआ कि हमारे मस्तिष्क में अभी भी ऐसी अनेक शक्तियाँ या रहस्य हैं जिन्हें अभी हमें अभी खोजना है। आजकल वैज्ञानिकों ने मस्तिष्क की क्षमताओं में अपार वृद्धि करने हेतु कई रहस्यमयी तकनीकों और पोषक तत्वों की खोज कर ली है। आज हम इन सारे रहस्यों से चिलमन उठा देंगे, आज हम सारे भेद खोल देंगे। आज आप जान जायेंगे कि मस्तिष्क किस प्रकार काम करता है, किस तरह आप स्वयं को बुद्धिमान, विद्वान और सफल बना सकते हैं तथा कैसे आप अपनी स्मरण शक्ति को चाकू की धार जैसा पैना बना सकते हैं। आज हम आपको यह भी बता देंगे कि कैसे आप हर परीक्षा में अपने सारे प्रतिद्वंदियों को पछाड़ कर सर्वोच्च अंक प्राप्त करेंगे तथा कैसे आप हर परीक्षा के प्रश्न पत्रों को चुटकियों में हल कर लेंगे। आज के बाद कैसे सफलता आपके कदम चूमेगी। आज हम और

आप मिल कर आपकी सफलता के लिए नई इबारत लिख देंगे।
आज यहां हम कुछ महान पोषक तत्वों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे जिनका सेवन आपकी स्मरण शक्ति, विद्वता, पठन क्षमता, चतुराई, दूरदर्शिता, कल्पनाशीलता, सृजनात्मकता, एकाग्रता, परिपक्वता, निर्णय क्षमता, व्यवहार कुशलता, सहनशीलता, सकारात्मक प्रवृत्ति, मानसिक शांति, बुद्धिमत्ता और शैक्षणिक क्षमता में अभूतपूर्व, असिमित, अविश्वसनीय, अचूक तथा अपार वृद्धि करेगा।





ओमेगा-3 या ओम-3 वसा अम्ल नाड़ीतंत्र के प्रधान मंत्री
ओमेगा-3 बहु असंतृप्त वसा अम्ल है यानी इनमें एक से ज्यादा द्वि-बंध होते हैं। ओमेगा-3 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रंखला होती है जिसके एक सिरे से, जिसे ओमेगा एण्ड कहते हैं, मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से, जिसे डेल्टा एण्ड कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) जुड़ा रहता हैं। इनमें पहला द्वि-बंध कार्बन की लड़ के मिथाइल या ओमेगा सिरे से तीसरे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इन्हें ओमेगा-3 वसा अम्ल कहते हैं। हमारे मस्तिष्क का 60% भार वसा होता है और इसका आधा ओमेगा-3 वसा अम्ल डोकोसे-हेक्जानोइक एसिड (DHA) 22:6 n-3 का होता है। दृष्टि पटल का 50% भार डोकोसे-हेक्जानोइक एसिड (DHA) 22:6 n-3 का होता है। इससे आप अनुमान लगा सकते हैं कि ओमेगा-3 वसा अम्ल मस्तिष्क के लिए कितना महत्वपूर्ण है। ओमेगा-3 वसा अम्ल दो प्रकार के होते हैं ।

वानस्पतिक


समुद्री

अल्फा लिनोलेनिक एसिड (ALA) 18:3 n-3

1-आईकोसा-पेन्टानोइक एसिड (EPA) 20:5n-3





18:3 का मतलब है कि इसमें 18 कार्बन की लड़ है ओर इसमें 3 द्वि-बंध हैं।n-3 दर्शाता है कि यह ओमेगा-3 वसा अम्ल है। यह आवश्यक वसा अम्ल है यानी ये शरीर में नहीं बन सकते और हमें इसे भोजन द्वारा ही ग्रहण करना होता है।
इसके प्रमुख स्रोत अलसी, अखरोट, कद्दू के बीज, चिया के बीज आदि हैं।

2-डोकोसे-हेक्जानोइक एसिड (DHA) 22:6 n-3



EPA और DHA अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ALA) के चयापचय द्वारा शरीर में बनते हैं। ये दोनों सालमोन, मेकरेल, हेरिंग, हेलीबुट, सरडीन आदि मछलियों में पाये जाते हैं इसलिए समुद्री ओमेगा-3 वसा अम्ल कहलाते हैं। ई.पी.ए. और डी.एच.ए. की खुराक 500-1000 मि.ग्रा. प्रति दिन है।









ओमेगा-3 वसा डी.एच.ए. और मस्तिष्क
अब यह एक स्थापित तथ्य है कि ओमेगा-3 वसा अम्ल डी.एच.ए. मस्तिष्क और (आंखों के) दृष्टि पटल के विकास, संरचना एवं कार्य प्रणाली के लिए अति विशिष्ट, अति आवश्यक व अति महत्वपूर्ण है। मस्तिष्क और आंखों में डी.एच.ए. भारी मात्रा में संचित होता है ताकि मस्तिष्क व नाड़ियों की कार्य प्रणाली एवं दृष्टि की तीक्ष्णता उत्कृष्ट बनी रहे। डी.एच.ए. नाड़ी कोशिकाओं की भित्तियों या झिल्लियों के फोस्फोलिपिड घटक में संचित होकर इन्हें विशिष्ट गुण प्रदान करता है। अनोखी संरचना वाले डी.एच.ए. में 22 कार्बन की एक लड़ होती है जिसमें 6 प्राकृतिक द्वि-बंध होते हैं। इनका विन्यास सिस (cis) होने के कारण जहां भी द्वि-बंध बनता है यह लड़ मुड़ जाती है और इसके अणु को एक विशेष मुड़ी हुई आकृति देते हैं, जैसा हमने चित्र में दिखाया है। डी.एच.ए. की यह विशेष संरचना और  अत्यंत  कम  गलनांक -500 सेल्सियस (यानी शून्य से 500 सेल्सियस कम तापमान पर भी यह तरल रहता है) मस्तिष्क के स्लेटी द्रव्य (ग्रे मेटर) और अन्य सभी नाड़ी कोशिकाओं की झिल्लियों को वांछनीय तरलता प्रदान करती हैं। डी.एच.ए. इसके अलावा इन झिल्लियों को लचीलापन, संपीड़न, पारगम्यता और नियंत्रक प्रोटीन से संवाद व समन्वय भी स्थापित करते हैं। डी.एच.ए. के उपरोक्त महान बुनियादी गुण, अनोखी कार्य प्रणाली और आयन सरिता (ion channels) का नियंत्रण ही नाड़ी तंत्र में तीक्ष्ण स्मृति, तीव्र आयन संकेतन प्रणाली, प्रखर बुद्धि और प्रबल शैक्षणिक क्षमता सुनिश्चित करते हैं।
गर्भावस्था की आखिरी तिमाही से लेकर शिशु की उम्र दो वर्ष होने तक शिशु के मस्तिष्क, आंखों और संपूर्ण नाड़ी तंत्र में डी.एच.ए. का भारी मात्रा में संचयन होता है। लेकिन इसके बाद भी मस्तिष्क, आंखों और संपूर्ण नाड़ी तंत्र के स्निग्ध संचालन हेतु आजीवन डी.एच.ए. की आवश्यकता रहती है। शरीर में सबसे ज्यादा डी.एच.ए. का संचय दृष्टि पटल की बाहरी परत (जिसमें में रोडोप्सिन होता है जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील एक रंग द्रव्य है जो प्रकाशीय बिंब का अभिग्रहण करता है) की कोशिकाओं की झिल्लियों के फोस्फोलिपिड घटक में होता है। इसीलिए प्रसव के बाद स्त्री के डी.एच.ए. भण्डार लगभग रिक्त हो जाते हैं, जिनके पुनर्भरण में लगभग 3-4 वर्ष लग सकते हैं।
यदि स्त्रियों को तेजस्वी व तेज तर्रार शिशु की कामना है तो गर्भावस्था में ओमेगा-3 की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करना अति आवश्यक है। नार्वे के वैज्ञानिक डॉ. शिलोट ने यह सिद्ध किया है कि गर्भावस्था में यदि पर्याप्त ओमेगा-3 वसा अम्ल दिये जायें तो जन्म लेने वाला शिशु होनहार, विद्वान और प्रखर बुद्धि वाला होता है। पर्याप्त ओमेगा-3 का सेवन करने वाले लोगों में अवसाद, शीज़ोफ्रेनिया, साइकोसिस आदि रोगों की संभावना बहुत कम होती हैं।
आवश्यक वसा अम्ल ए.एल.ए. का यकृत और अन्य ऊतकों में बीटा ऑक्सीकरण होता है, ऊर्जा उत्पन्न होती है तथा कार्बन डाई-ऑक्साइड, जल व ए.टी.पी. बनता है। ए.एल.ए. का कुछ प्रतिशत दीर्घीकृत तथा असंतृप्तीकृत होकर डी.एच.ए. में परिवर्तित हो जाता है।
ई.पी.ए.
ई.पी.ए. भी ओमेगा-3 वसा अम्ल है जिसमें 20 कार्बन की लड़ होती है तथा 5 प्राकृतिक द्वि-बंध होते हैं। शोधकर्ता बताते हैं कि ई.पी.ए. का नाड़ी तंत्र की संरचना में विशेष योगदान नहीं है परंतु यह मस्तिष्क के रक्त संचार में वृद्धि करते हैं, विशिष्ट प्रोस्टाग्लेंडिन हार्मोन का निर्माण करते हैं जो एक विशिष्ट सूचना-अणु की भांति काम करते हैं और मस्तिष्क में सूचनाओं के संचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, मस्तिष्क के कई कार्यों जैसे इन्फ्लेमेशन पर अंकुश रखते हैं और रक्षा प्रणाली को मजबूत रखते हैं। इस तरह ई.पी.ए. मस्तिष्क की कार्य प्रणाली और संदेश संचार के लिए अत्यंत आवश्यक है। शीजोफ्रेनिया रोग के उपचार में भी ई.पी.ए. बहुत महत्वपूर्ण है।
मस्तिष्क को सुचारु और सक्रिय रखने के लिए ओमेगा-6 भी आवश्यक होते हैं। शरीर में ओमेगा-6 और ओमेगा-3 का अनुपात 1:1 होना चाहिए। हमारे आधुनिक आहार में ओमेगा-3 की मात्रा नगण्य होती है और हमारे ज्यादातर तेल, फास्ट फूड, जंक फूड तथा दुग्ध उत्पाद ओमेगा-6 से भरपूर होते हैं अत: हम ओमेगा-3 वसा अम्ल की अल्पता या कमी से ग्रसित रहते हैं।
ओमेगा-3 वसा अम्ल नाड़ी कोशिकाओं को स्वस्थ और सक्रिय रखते हैं। यह नाड़ी कोशिकाओं की झिल्लियों पर स्थित अभिग्राहकों को सीरोटोनिन नामक नाड़ीसंदेश वाहकों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं जो मस्तिष्क की मनोदशा और मुद्रा अति प्रसन्न रखते हैं। ये हमारे मन को शांत रखते है। ये हमें चुस्त रखते हैं, किसी भी काम में आलस्य नहीं आता तथा क्रोध कोसों दूर रहता है। इनके सेवन से मन और शरीर में एक दैविक शक्ति और ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस तरह सीरोटोनिन हमें प्रसन्नता व खुशी प्रदान करते हैं अतः यह फील गुड रसायन कहलाता है।
ई.पी.ए. और डी.एच.ए. कोशिकीय संकेतन प्रणाली में सहायक
ऊपर आपने देखा कि डी.एच.ए. कोशिकाओं की झिल्लियों को किस प्रकार विशेष गुण प्रदान करते हैं। ये झिल्लियां ही कोशिका में विभिन्न तत्वों की आवाजाही तथा नाड़ी संदेश अभिग्रहण को नियंत्रित करती हैं और इस प्रकार विभिन्न कोशिकाएं आपस में संपर्क व समन्वय रखती हैं। यह डी.एच.ए. ही कोशिकीय संकेतन प्रणाली का प्रबंधन करता है। सैंकड़ों विशिष्ट अणु कोशिकीय संकेतन प्रणाली के कार्य को नियति देते हैं। ये अणु कोशिका के भीतर की विभिन्न संरचनाओं के बीच तथा विभिन्न कोशिकाओं और ऊतकों के बीच संकेतों का आदान-प्रदान करते हैं। कुछ लिप्यंतरण अणु कोशिका और जीन के बीच संवाद सुनिश्चित करते हैं।



कुछ अणु विशेष कोशिकीय कार्यों जैसे माइटोकोंड्रिया द्वारा ऊर्जा के उत्पादन, जीन को सक्रिय या शांत करना, विशेष प्रोटीन्स का निर्माण, ऑयन सरिताओं का नियंत्रण और शोथ-कारी मध्यस्त तत्वों के नियोजन को नियति देते हैं।

ऊर्जा के उत्पादन में सहायक कई किण्वक जैसे एडीनाइल साइक्लेज व प्रोटीन काइनेज-ए डी.एच.ए. द्वारा नियंत्रित होते हैं। डी.एच.ए. शोथ-कारक मध्यस्त तत्वों जैसे प्रोस्टाग्लेन्डिन ई2, थ्रोम्बोक्सेन्स और ल्यूकोट्राइन्स के निर्माण को अवरुद्ध करते हैं तथा शोथहर तत्वों जैसे लाइपोक्सिन, रिज़ोल्विन और मस्तिष्क के रक्षक न्यूरोप्रोटीन्स का निर्माण बढ़ाते हैं।


डी.एच.ए. कोशिकीय किण्वक सोडियम+/पोटेशियम एटीपे को भी नियंत्रित करते हैं जो ए.टी.पी. से ऊर्जा उत्पन्न कर सोडियम पंप को संचालित करते हैं, यह सोडियम पंप कोशिकाओं में सोडियम+/पोटेशियम+ आयन के



आवागमन को नियंत्रित करता है और मस्तिष्क की कोशिकाओं की सुरक्षा करता है। डी.एच.ए. का एक और लाभ यह भी है कि यह मस्तिष्क में फोस्फेटाइडिलसेरिन (पीएस) के स्तर को नियंत्रित करता है। फोस्फेटाइडिलसेरिन (पीएस) भी कोशिकाओं के रक्षक हैं।
डी.एच.ए. कोशिकाओं में केल्शियम की तरंगों या सरिताओं का नियोजन करते हैं। ये तरंगे कोशिकाओं के विभिन्न कार्य जैसे नाड़ी संदेश अभिग्राहकों के निर्माण, माइट्रोकोंड्रिया के कार्य, जीन्स को सक्रिय या शांत करना, मुक्त कणों से सुरक्षा और विकासशील मस्तिष्क में नाड़ियों को परिपक्व करती हैं।
डी.एच.ए. और ई.पी.ए. परऑक्सीजोम प्रोलीफरेटर-एक्टिवेटेड रिसेप्टर या पीपार PPAR नामक कोशिका संकेतन प्रणाली को भी नियंत्रित करते हैं। यह प्रणाली शोथकारी साइटोकाइन का निर्माण अवरुद्ध करती है, जिससे मधुमेह, एथ्रोस्क्लीरोसिस, ऑटो-इम्यून रोग, एल्झीमर, पार्किनसन्स आदि रोगों से शरीर को क्षति कम होती है।