मछली या अलसी !! किसे चुनें किसे न चुनें?? एक निष्पक्ष व तुलनात्मक अध्ययन
मछली के बड़े व्यवसायी और उनके समर्थक कई दशकों से यह सिद्ध करने की कोशिश करते आये हैं कि वानस्पतिक ओमेगा-3 ए.एल.ए. जो एक आवश्यक वसा अम्ल है ( यानी यह शरीर में निर्मित नहीं होता है व इसे भोजन द्वारा ही ग्रहण करना नितांत आवश्यक है) शरीर में ई.पी.ए और डी.एच.ए. (जो मछलियों में पाये जाते हैं) का वांछित निर्माण करने में सक्षम नहीं है। यदि ऐसा है तो इसका क्या सबूत हैं, जब भी उनसे पूछा जाता है तो वे ठीक से जवाब दे नहीं पाते हैं या कभी कहते हैं की ए.एल.ए. का बहुत ही थोड़ा भाग ई.पी.ए. और डी.एच.ए. में परिवर्तित हो पाता है, कभी कहते हैं कि कुछ लोग ई.पी.ए. और डी.एच.ए. का निर्माण नहीं कर पाते हैं।
ये प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि ई.पी.ए. हमें स्वस्थ और निरोग रखने हेतु आइकोसेनोइड हार्मोन बनाने में सहायक है और डी.एच.ए. मस्तिष्क व ऑखों के विकास तथा मस्तिष्क की सारी कार्य प्रणाली, शुक्राणुओं के निर्माण, हृदय की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। यदि हमारा शरीर ए.एल.एसे ई.पी.ए और डी.एच.ए. बनाने में सक्षम है तो हमें मछली या इसका तेल खाने की कोई आवश्यकता नहीं है परन्तु यदि हमारा शरीर ई.पी.ए. और डी.एच.ए. कोबनाने में सक्षम नहीं है तो हम सभी को मछली और उनका तेल खाना नितान्त आवश्यक है।
मछलियों के व्यवसाइयों और उनको समर्थन देने वालों का समुदाय बहुत अमीर,बड़ा और प्रभावशाली हैऔर अपने स्वार्थों के निहित कई दशकों से निरंतर अंतरराष्ट्रीय मीडिया, सरकारी संस्थाओं के उच्चाधिकारियों, चिकित्सकों और राज नेताओं पर पानी की तरह दौलत लुटा रहा है। ये सारे लोग पूरी तरह इन व्यवसाइयों के चंगुल में हैं जिसके परिणाम स्वरूप सारे पत्र पत्रिकाएं, हैल्थ जरनल्स मछली की प्रशंसा करने वाले लेखों से भरे पड़े हैं। सारे टी.वी. चेनलों पर समय समय पर बड़े बड़े पत्रकार और चिकित्सक मछली की तारीफों के पुल बांधते दिखाई देते हैं तथा यथार्थ व वैज्ञानिक लगने वाले पर आधे झूंठे तथ्य प्रस्तुत कर जनता को गुमराह करते हैं। मछली तेल के संपुट मुंहमांगे दामों पर बेचे जा रहे हैं। आप देखिये कि मछली ओमेगा-3 की पर्याय बन गई है और आवश्यक वसा अम्ल ओमेगा-3 के महान वानस्पतिक स्रोत अलसी और चिया को कोई जानता ही नहीं है। अलसी और चिया की शोध, जागरुकता और प्रोत्साहन पर शायद ही कोई सरकार दौलत खर्च करती है। मेडीकल पाठ्यक्रम व पुस्तकों पर से चुपचाप अलसी और चिया के नाम मिटा दिये गये हैं।
आइये आज निष्पक्ष होकर हम यथार्थ जानने की कोशिश करते हैं। हमने ओमेगा-3 वसा अम्लों पर हुए परीक्षणों के बारे में काफी अध्ययन किया है, हमारी एन जी ओ संस्था “अलसी चेतना यात्रा” द्वारा की गई शोध और राष्ट्रीय स्तर पर किये गये सर्वेक्षण के नतीजों को भी ध्यान में रखा है और उडो इरेस्मस की पुस्तक “फैट्स दैट हील एण्ड फैट्स दैट किल” को विस्तार से पढ़ा है। तथ्य यह बताते हैं कि पिछले कई दशकों से हमारे भोजन में ए.एल.ए. की मात्रा बहुत ही कम हो गई है, अमेरिका की स्थिति तो सबसे ही खराब है। जब हमारे शरीर में ए.एल.ए की मात्रा बहुत ही नगण्य है तो ई.पी.ए. और डी.एच.ए. का निर्माण भी तो उसी अनुपात में होगा।
जब 1950 में डॉ. योहाना बुडविज ने वसा अम्लों को पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी की तकनीक विकसित की और ओमेगा-3 आवश्यक वसा अम्ल ए.एल.ए की खोज की थी। डॉ. बुडविज ने पता लगाया था कि ए.एल.ए. के महान स्रोत अलसी, अखरोट और चिया के बीज है।
डॉ . बुडविज का नाम नोबेल पुरस्कार के लिए सात बार चयनित हुआ था। डॉ . बुडविज ने ट्रांसफैट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा अम्ल यानी मार्जरीन या हिन्दी भाषा में वनस्पति घी के हमारे शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे में खूब अध्ययन किया था । वे मार्जरीन को प्रतिबंधित करना चाहती थी जिसके कारण मार्जरीन बनाने वाले उनके दुश्मन बन गये थे। मछली व्यवसाइयों का समुदाय भी डॉ. बुडविज की खोज से बहुत परेशानी में था क्योंकि वह मछली नहीं बल्कि अलसी को प्रोत्साहन दे रही थी। इसलिए उन्होने भी बुडविज के विरूद्ध चक्रव्यूह रचा, उन्हे प्रताड़ित किया और उनके विरुद्ध मुकदमे दाखिल किये। पर अंत में विजय सत्य की ही हुई। आज ठण्डी विधि द्वारा तैयार हुआ स्वास्थ्यप्रद अलसी का तेल मिलने लगा है और लोग इसे अपना रहे हैं।
हमें अक्टूबर, 2002 की ब्रिटिश जरनल ऑफ न्यूट्रीशन में पुरुषों और स्त्रियों पर हुए दो परिक्षणों की विस्तृत रिपोर्ट पढ़ने को मिली। पहला परीक्षण स्त्रियों पर किया गया। स्त्रियों ने अपने शरीर में विद्यमान ए.एल.ए. के 36% भाग को लंबी लड़ वाले ओमेगा-3 वसा अम्लों क्रमशः 21% ई.पी.ए., 6% डी.पी.ए. व 9% डी.एच.ए. में परिवर्तित किया। दूसरे परीक्षण में पुरुषों ने स्त्रियों के मुकाबले आधे 16% ए.एल.ए. को क्रमशः 8% ई.पी.ए व 8% डी.एच.ए. परिवर्तित किया। स्त्रियों ने पुरुषों के मुकाबले दोगुने ए.एल.ए. को ई.पी.ए व डी.एच.ए. में परिवर्तित किया शायद इसलिए कि उसे दो मस्तिष्कों और दो दृष्टि-पटलों (स्वयं तथा उसके शिशु के) को पोषण देना होता है।
इन परीक्षणों में यह भी देखा गया कि कुछ स्त्रियों में, जो परिवार नियोजन हेतु इस्ट्रोजन की गोलियां नियमित ले रही थी, ए.एल.ए. का परिवर्तन शीघ्र तथा सहजता से हुआ। शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पर पहुंचे कि इस्ट्रोजन ए.एल.ए. के परिवर्तन को गति देते हैं तथा रजोनिवृत्ति के बादस्त्रियों को और पुरुषों को यदि थोड़ा इस्ट्रोजन दिया जाये तो ए.एल.ए. का परिवर्तन शीघ्र व सहज होगा।
अलसी का नियमित सेवन करने वालों के शरीर में पर्याप्त लिगनेन रहता है क्योंकि अलसी लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत है। लिगनेन इस्ट्रोजन का प्रतिरूप है और दुर्बल इस्ट्रोजन की तरह कार्य करता है व स्त्रियों में रजोनिवृत्ति के पहले यह इस्ट्रोजन की मात्रा कम करता है तथा रजोनिवृत्ति बाद इस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ाता है। अतः अलसी सेवन करने वालों के शरीर में पर्याप्त इस्ट्रोजन का प्रतिरूप लिगनेन और भारी मात्रा में ए.एल.ए. भी होता है और ए.एल.ए. बड़ी सहजता व शीघ्रता से ई.पी.ए व डी.एच.ए. का निर्माण करता है। साथ में लिगनेन एक बलवान विषाणु-रोधी, कीटाणु-रोधी, फफूंद-रोधी, कैंसर-रोधी, कॉलेस्ट्रोल-रोधी, ल्यूपस-रोधी, डायबिटीज-रोधी, शोथ-हर और प्रति-ऑक्सीकारक भी है। यह एक महान पोषक तत्व है। यह अलसी खाने के अतिरिक्त लाभ हैं।
शोधक्रताओं ने उपरोक्त परीक्षणों के आधार गणना करके यह बताया कि यदि पुरुषों को 3 बड़ी चम्मच और स्त्रियों को 2 बड़ी चम्मच अलसी तेल नियमित दिया जाये तो उनके शरीर में क्रमशः मछली के 11 और 17 बड़े केप्स्यूल जितना इ.पी.ए. और डी.एच.ए. प्रति दिन बनेगा।
मछली के संपुट खाने में एक और बड़ी परेशानी है। इसमें पारा, पी.सी.बी., कीटाणुनाशक आदि की मात्रा प्रदूषण के रूप में रहती है। हॉलांकि इन दूषित पदार्थों को निकालने के लिए मछली के तेल को परिष्कृत किया जाता है। लेकिन परिष्कृत करने की प्रक्रिया में मछली का तेल को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है जिससे वह और ज्यादा खराब तथा विषैला हो जाता है,कारण यह है कि ई.पी.ए.और डी.एच.ए. प्रकाश, ऑक्सीजन और तापमान के प्रति अत्यंत संवेदनशील होते हैं, ए.एल.ए से भी पांच गुना ज्यादा। अत: खराब और टॉक्सिक मछली तेल के संपुट खाने से अच्छा है हम स्वच्छ जल में पैदा हुई मोटी मछलियां खायें या जैविक ठण्डी विधि द्वारा निकाला हुआ एकल-निष्कासित अलसी का तेल खायें।
शरीर में ई.पी.ए. और डी.एच.ए. के निर्माण को निम्न घटक प्रभावित करते हैं।
• यदि शरीर में ओमेगा-6 वसा अम्ल की मात्रा ज्यादा होती है तो ई.पी.ए.और डी.एच.ए. का निर्माण कम होता है। परन्तु यदि ओमेगा-3 ए.एल.ए ज्यादा हो तो स्वाभाविक है कि ज्यादा ई.पी.ए. और डी.पी.ए. बनेगा।
• विटामिन बी-3, बी-6, और सी तथा जिंक और मेग्नीशियम इनके निर्माण के लिए आवश्यक है और यदि शरीर में इनकी कमी है तो निर्माण कम होगा।
• यदि हमारे भोजन में कार्ब की मात्रा ज्यादा है तो भी ई.पी.ए.और डी.एच.ए. का निर्माण कम होगा लेकिन यदि हम आहार में प्रोटीन ज्यादा ले तो इनका निर्माण ज्यादा होगा।
• यदि शरीर में ओमेगा-6 वसा अम्ल की मात्रा ज्यादा होती है तो ई.पी.ए.और डी.एच.ए. का निर्माण कम होता है। परन्तु यदि ओमेगा-3 ए.एल.ए ज्यादा हो तो स्वाभाविक है कि ज्यादा ई.पी.ए. और डी.पी.ए. बनेगा।
• विटामिन बी-3, बी-6, और सी तथा जिंक और मेग्नीशियम इनके निर्माण के लिए आवश्यक है और यदि शरीर में इनकी कमी है तो निर्माण कम होगा।
• यदि हमारे भोजन में कार्ब की मात्रा ज्यादा है तो भी ई.पी.ए.और डी.एच.ए. का निर्माण कम होगा लेकिन यदि हम आहार में प्रोटीन ज्यादा ले तो इनका निर्माण ज्यादा होगा।
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